नई दिल्ली : केंद्र सरकार और दिल्ली की राज्य सरकार के बीच उपजे अधिकारों के विवाद को लेकर लगाता नया मोड़ सामने आ रहा है। यही नहीं मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है। बताया जा रहा है कि यह जंग थमने का नाम ही नहीं ले रही है और इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट 29 मई यानी की शुक्रवार को सुनवाई करने वाला है। मिली जानकारी के अनुसार गृहमंत्रालय द्वारा 21 मई को गजट में अधिसूचना जारी कर केजरीवाल सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई को केंद्रीय कर्मियों, अधिकारियों और पदाधिकारियों पर कार्रवाई के अधिकार से दूर कर दिया गया है। यही नहीं दिल्ली के उपराज्यपाल को वरिष्ठ अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती करने की मांग ही शक्तियां दे रही हैं।
हाईकोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने कहा कि वे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार से बाध्य हैं। यही नहीं उसकी सहायता और सलाह से ही हम काम कर सकते हैं। दिल्ली राज्य की सरकार को लोगों ने ही निर्वाचित किया है। तो दूसरी ओर केंद्र सरकार अपने अधिकारों में कोई कमी नहीं कर सकती है। न्यायालय का कहना है कि संवैधानिक या कानूनी बाध्यता न हो तो एलजी को दिल्ली की चुनी हुई सरकार का सम्मान करना होगा।कहा गया है कि केंद्र सरकार की अधिसूचना ध्वनिमत से खारिज कर दी गई है। अधिसूचना पर चर्चा के लिए बुलाए गए दो दिवसीय आपात सत्र के अंतिम दिन आम आदमी पार्टी के विधायकों ने केंद्र की अधिसूचना को भ्रष्टाचार रोकने की पहल का हिस्सा बताया है।
अरविंद केजरीवाल ने मामले में कहा कि नौकरशाहों की नियुक्ति के साथ पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था के मामले में उपराज्यपाल को अधिक शक्तियां देने वाली अधिसूचना राजनीतिक हित का आंकलन कर की जा सकती है। केंद्र सरकार आम आदमी पार्टी की सरकार को असफल करने में लगी है। इसलिए न तो पूर्ण राज्य के दर्जे पर और न ही अधिकारियों की नियुक्ति पर आरोप लगाए गए हैं। दिल्ली में झुग्गी - झोपडि़यों के मसले पर भी सरकार ने ऐसा ही प्रयास किया है जिससे लोगों में आम आदमी सरकार के प्रति मोह भंग हो जाए।