गांव की होली
गांव की होली
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होली एक ऐसा त्यौहार जिसे हर आम और खास मनाता है, दिलो के मेल को रंगीन बौछारों से धोने वाला ये त्यौहार हिंदुस्तान के हर गांव और शहर में बड़े हर्षोउल्लास से मनाया जाता है. शहरो के मुकाबले गावो की होली कुछ अलग होती है. गांव की होली में मस्ती और अल्हड़ता ज्यादा होती है. आज भी गांव में होली के लगभग 15 दिन पहले पुरे गांव से गोबर के उपले एकत्रित कर होली दहन स्थल पर पहुचाये जाते है जिनका उपयोग होली वाले दिन दहन के दौरान किया जाता है.

होली के दिन पूजन के पश्चात् होली की टोली निकल पड़ती है मस्ती और मौज के साथ रंगो में सराबोर होने के लिए. गांव यदि बड़ा हो तो दो या तीन स्थानों पर और यदि गांव छोटा हो तो सिर्फ एक स्थान पर एक बड़े से लोहे या सीमेंट से बने टब में रंगो को  घोल कर रखा जाता है और हर आने जाने वालो को पकड़ कर उसे उसमे डुबोया जाता है. पास ही कही भांग के भजिये, जलेबी और अन्य मिठाइयों की दुकान होती है जहा से हर आधे एक घंटे के बाद पूरी टोली का नाश्ता आता है.

दिन भर चलने वाली इस मस्ती में किसी को नहीं बक्शा जाता. एतराज करने वाले को भी जबरदस्ती डुबो कर बाद में माफ़ी मांग ली जाती है. क्या बच्चे, क्या बड़े,क्या महिलायें, क्या पुरुष, सभी इस दिन का पूरा आनंद उठाते है. सभी गीले शिकवे भुला कर सब एक साथ इस पर्व का आनंद लेते है. गांव में सादगी और परंपरागत स्वरुप में होली का मनाया जाना इसके मूल स्वरुप को जिन्दा रखने की भी कोशिश का हिस्सा है.

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