800 साल पूराने इस मस्जिद का नाम पड़ा था 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा', जानें क्या है वजह
800 साल पूराने इस मस्जिद का नाम पड़ा था 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा', जानें क्या है वजह
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आपने क्या 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' देखा या सुना है, जो की राजस्थान के अजमेर में स्थित है असल में यह कोई झोंपड़ा नहीं बल्कि एक मस्जिद है, जो सैकड़ों सालों पुरानी है. यह भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक मस्जिद है और अजमेर का सबसे पुराना स्मारक भी है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस मस्जिद का नाम 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' ही क्यों पड़ा है. तो चलिए इसके इतिहास के बारे में हम आपको बता देते हैं, जो करीब 800 साल पुराना है. 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' 1192 ईस्वी में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. असल में इस जगह पर एक बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय और मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था. अढ़ाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिसपर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है.

बता दें की इस मस्जिद में कुल 70 स्तंभ हैं. असल में ये स्तंभ उन मंदिरों के हैं, जिन्हें धवस्त कर दिया गया था, लेकिन स्तंभों को वैसे ही रहने दिया गया था. इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है और हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की हुई है. 90 के दशक में यहां कई प्राचीन मूर्तियां ऐसे ही बिखरी पड़ी थीं, जिन्हें बाद में संरक्षित किया गया. अढ़ाई दिन के झोंपड़े का आधे से ज्यादा हिस्सा मंदिर का होने के वजह से यह अंदर से मस्जिद न लगकर किसी मंदिर की तरह ही नजर आता है. हालांकि जो नई दीवारें बनवाई गईं है, उनपर कुरान की आयतें जरूर लिखी गई हैं, जिससे ये पता चलता है कि यह एक मस्जिद है.

ये भी माना जाता है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन यानी मात्र 60 घंटे का समय लगा था, इसलिए इसे 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' कहा जाने लगा. हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहां चलने वाले ढाई दिन के उर्स (मेला) के वजह से इसका नाम 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' पड़ा था.

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