नई दिल्ली: 13 सितंबर की तारीख वैसे तो आम दिनों की तरह लगती है, किन्तु भारत के इतिहास में ये तारीख काफी मायने रखती है. ऐसा इसलिए क्योंकि 15 अगस्त सन 1947 को आजादी तो हमें नसीब हो गई फिर भी वह आज़ादी मुकम्मल नहीं थी. कई रियासतें अलग होने पर आमादा थीं. उन्हीं में से सबसे सशक्त और संपन्न रियासत थी हैदराबाद. वहां पर निजामशाही थी. निजाम ने हिंदुस्तान की हुकूमत को मानने से साफ़ इनकार कर दिया. इतना ही नहीं निजाम की सेना बहुसंख्यक हिंदू आबादी पर अत्याचार करने लगी.
नतीजतन तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बड़ा फैसला लेते हुए हैदराबाद रियासत में पुलिसिया कार्रवाई करने का आर्डर दे दिया. इस कार्रवाई को ही कोडनेम 'ऑपरेशन पोलो' के नाम से जाना जाता है और 13 सितंबर, 1948 को सुबह चार बजे ये कार्रवाई शुरू हुई. निजाम की सेना यानी रजाकरों के शुरुआती प्रतिरोध के बाद 18 सितंबर तक पूरी रियासत पर भारत का कब्ज़ा हो गया. निजाम ने आत्मसमर्पण करते हुए भारत के साथ विलय के समझौते पर दस्तखत कर दिए. दरअसल, उस समय हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान (आसिफ जाह सप्तम) थे और रियासत की बहुसंख्यक आबादी हिंदू थी.
रियाया तो भारत के साथ जाना चाहती थी, किन्तु निजाम अपनी मुस्लिम कुलीनों से बनी फौज रजाकर के दम पर उन पर शासन करना चाहते थे. रजाकर हैदराबाद रियासत के भारत के साथ विलय के विरुद्ध थे. उन्होंने निजाम के शासन का समर्थन किया और पाकिस्तान में विलय की कोशिश भी की. हालांकि नवंबर 1947 में हैदराबाद ने भारत के साथ यथास्थिति बनाए रखने संबंधी करार किया था. किन्तु रजाकरों के हिंदू आबादी पर जुल्म की वजह से सरदार पटेल ने 13 सितंबर, 1948 को 'ऑपरेशन पोलो' का आदेश दिया. उसके अगले चार दिनों के अंदर हैदराबाद में हमेशा के लिए तिरंगा लहराने लगा.
गुरुत्वाकर्षण पर दिए बयान को लेकर ट्रोल हुए पीषूष गोयल, कांग्रेस ने भी साधा निशाना
पाक पीएम इमरान खान का आतंकवाद पर बड़ा इकरार, कहा- 1980 में तैयार किए थे जेहादी
आर्थिक मंदी को लेकर मोदी सरकार पर हमलावर हुए राहुल गांधी, कही ये बात