हिन्दू नववर्ष आज, जानिए कैसे हुई थी इस दिन की शुरुआत
हिन्दू नववर्ष आज, जानिए कैसे हुई थी इस दिन की शुरुआत
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   आप सभी को बता दें कि गुड़ी पड़वा', चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी साढ़े तीन शुभ मुहूर्तों में से एक है और सोने की लंका जीत राम के अयोध्या लौटने का दिन यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बोला जाता है. कहते हैं जब अयोध्यावासियों ने गुड़ी तोरण लगाकर अपनी खुशी का इजहार किया था और इसी कारण गुड़ी पड़वा मनाया जाता है. तभी से चैत्र प्रतिपदा पर गुड़ी की परंपरा का श्रीगणेश हुआ व यह दिन 'गुड़ी पड़वा' बतौर जाना गया.

   इस बार यानी वर्ष 2023 में यह त्यौहार 22 मार्च को है. आप सभी को बता दें कि 'गुड़ी पड़वा' में अध्यात्म मंदिर के दरवाजे यानी मोक्ष द्वार का गहरा गुरुमंत्र छिपा है और तन कर खड़ी 'गुड़ी' परमार्थ में पूर्ण शरणागति यानी एकनिष्ठ शरणभाव का संदेश देती है, जो ज्ञानप्राप्ति के, परमानंद का अहम साधन है. इसी के साथ 'पड़वा' साष्टांग नमस्कार (सिर, हाथ, पैर, हृदय, आँख, जाँघ, वचन और मन आठ अंगों से भूमि पर लेट कर किया जाने वाला प्रणाम) का संकेत देता है. कहा जाता है गुड़ी मानव देह की प्रतीक है और इस एक दिन के त्यौहार में आपको आदर्श जीवन के प्रतिबिंब नजर आते हैं.

  ऐसे में 'गुड़ी' की लाठी को तेल, हल्दी लगा गर्म पानी से नहलाते हैं और उस पर चांदी की लोटी या तांबे का लोटा उल्टा डाल रेशमी जरी वस्त्र पहनाकर फूलों और शक्कर के हार और नीम की टहनी बांधकर घर के दरवाजे पर खड़ी करते हैं. इस दिन स्नान, सुगंधित वस्तुओं, षटरस (मीठा, नमकीन, कडुवा, चरपरा, कसैला और खट्टा छः तरह के रस) वस्त्र, अलंकार, पकवान इन तमाम वस्तुओं का उपभोग जरूरी होता है और तनी हुई रीढ़ से इज्जत के साथ गर्दन हमेशा ऊंची रख जीना यही तो 'गुड़ी' हमें सिखाती है.

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