हिंदी पत्रकारिता दिवस: क्या देश के पत्रकार, सचमुच बन चुके हैं चाटुकार

हिंदी पत्रकारिता दिवस: क्या देश के पत्रकार, सचमुच बन चुके हैं चाटुकार
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नई दिल्ली: अगर साहित्य को समाज का दर्पण माना जाता है, तो पत्रकारिता निर्मल जल कहा जाना चाहिए। पत्रकारिता का दायित्व समाज के संघर्ष को समाज के ही सामने रखना है। पत्रकार राष्ट्र के सरोकार के प्रत्येक मुद्दे मुखरता और जिम्मेदारी से उठाने का काम करता है। किन्तु मौजूदा हालात में पत्रकारिता अब तक के सबसे निम्नतम दौर से गुज़र रही है, क्योंकि आज के पत्रकार वास्तविक पत्रकार न होकर पत्तलकार बन चुके है। यह लांछन सारे पत्रकार परिवार पर इसलिए लग रहा है, क्योंकि वो कहावत है ना,  एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे बुरा काल आपातकाल को ही माना जाता है किन्तु उस समय में भी पत्रकारों को रोका गया था, पत्रकारिता को नहीं। पर आज पत्रकार पर चाटुकार होने का इल्जाम लग रहा है।

इस इल्जाम की वजह चंद पत्रकारों द्वारा सरकार के विरोध में झूठा प्रोपेगैंडा प्रदर्शित करना है। फिर चाहे उन पत्रकारों के इस कुकृत्य से देश की आत्मा ही तार-तार क्यों न हो जाए। ये पत्रकार प्रोपेगेंडा खड़ा करने में इस बात का कोई ख्याल नहीं रखते कि सच क्या है और झूठ क्या। जुलाई 2014 में हुए सहारनपुर दंगे से लेकर अब तक प्रत्येक वो कार्य जिससे सरकार का सम्बन्ध है या नहीं भी, उसका आरोप सरकार के सिर मढ़ देने का काम विपक्ष करता रहा है। विपक्ष के हर मुद्दे पर मिर्च-मसाला लगाकर जनता के सामने परोसने का निकृष्ट कार्य कुछ चाटुकार पत्रकार कर रहे हैं। विपक्ष का काम तो सियासत करना ही है, उसे सत्ता की भूंख है किन्तु इन पत्रकारों को न जाने किस चीज़ की मुराद है। ये पत्रकार अवार्ड वापसी गैंग से लेकर टुकड़े-टुकड़े गैंग के समर्थन में अखबारों के पन्ने भरते हैं और मीडिया में चींखते हैं, यहाँ तक तो ठीक था किन्तु जब यही पत्रकार पाकिस्तानी जेल में यातना झेल रहे भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के विरोध में भी लिखने लगते हैं तो पीड़ा बढ़ जाती है। 

हाल ही में हुए पुलवामा हमले और उसके बाद अभिनन्दन मामले में भी ये तथाकथित बुद्दिजीवी पत्रकारिता को कलंकित करने का निकृष्ट कार्य कर रहे थे। इन पत्रकारों ने पुलावामा हमले में भारत सरकार को घेरने का प्रयास तो ठीक हो सकता है, किन्तु पाकिस्तान में आतंकियों को मार गिराने पर पाकिस्तानी मीडिया से ज्यादा इनकी आंखों में आंसू नज़र आना हज़ार प्रश्न खड़े करता है। ये पत्रकार अभिनन्दन के मामले पर भारत सरकार को नीचा दिखाने के लिए इतना ज्यादा आतुर थे कि पाकिस्तान का महिमामंडन करने लगे। इन लोगों को आतंकियों का पनाहगाह देश पाकिस्तान जिससे पूरा विश्व नफरत कर रहा है, वह इन्हें शांति का रक्षक नज़र आता है, कुल मिलकर ये सरकार की बुराई में इतना उलझ जाते हैं कि इन्हे सच और झूठ, मित्र और शत्रु का भी भान नहीं रहता। क्योंकि पत्रकार अब चाटुकार बन चुका है।

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