पन्नों से निकलकर अल्फाज़ में समाई हिंदी की कहानी
पन्नों से निकलकर अल्फाज़ में समाई हिंदी की कहानी
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देशभर में आज हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। इस दौरान साहित्य अकादमियों के सभागार साहित्यकारों, कवियों की वाणियों से गूंज रहे हैं। भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और अन्य विभागों में हिंदी दिवस को लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इस दौरान यह बात सामने आई है कि हिंदी के प्रयोग को लेकर जनजागरूकता जगाई जा रही है। हिंदी दिवस को लेकर रैलियों का आयोजन किया जा रहा है तो विद्यालयों में लेखन, भाषण आदि की प्रतियोगिताऐं आयोजित की जा रही हैं। इन सभी आयोजनों के बीच यह बात निकलकर सामने आई है कि हिंदी अखबारी और किताबी पन्नों से निकलकर इंटरनेट और मोबाईल में समाने लगी है। जी हां, हिंदी दिवस पर हिंदी के कंप्युटर और डिजीटल अनुप्रयोग को लेकर चर्चा होने लगी है। हिंदी ने अपनी विकास यात्रा तत्सम और तद्भव शब्दों के साथ प्रारंभ की और आज वह हिंग्लीश तक पहुंच गई। ग्लोबलाईजेशन के इस दौर में यह भारत और हिंदी का ही प्रभाव रहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति को भी हिंदी में नमस्ते कहना पड़ा।

भारतीय मान्यता में कहा जाता रहा है कि नाद ब्रह्म से ही वर्णों की रचना हुई है और उनके संयोजन से ही शब्द बने हैं। ऐसे में हिंदी का मूल भी उस देवनागरी लिपि से हुआ जो नाद ब्रह्म से उदित हुई मानी गई है। हिंदी के प्रयोग को लेकर कई तरह के मत हैं। कुछ साहित्यकार आज भी हिंदी के शुद्ध और व्याकरण सम्मत प्रयोग को वाजिब ठहराते हैं तो कुछ का मानना है कि भाषा को अपना प्रसार करने के लिए व्याकरण के दायरे से बाहर निकलना ही होगा।

जिस तरह से अंग्रेजी ने देशों के प्रभाव के साथ खुद में अमेरिकन और ब्रिटिश अंग्रेजी के तौर पर शब्दों का संयोजन किया और उच्चारण के तौर पर उसे इंडियन इंग्लिश का नया नाम दिया गया उसी तरह से हिंदी को भी अन्य भाषाओं के साथ मिलने पर उसे खिचड़ी या हिंग्लीश कहकर उसका मजाक नहीं बनाना चाहिए।

तो हिंदी काफी समृद्ध हो सकती है। हिंदी के विकास में समाचार चैनलों ने भी काफी योगदान दिया है इलेक्ट्राॅनिक मीडिया ने जिस तरह से हिंदी में उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों को हिंदी के शब्दों के साथ जोड़कर प्रयोग में लाया है उसने महानगरों में इसके प्रयोग को जिंदा रखा है हालांकि यहां हिंदी बहुत सिमट गई है लेकिन यदि हिंदी ने अपना दायरा खोल लिया तो यहां इसके समृद्ध होने के आसार हैं। 

किसी भी वस्तु या तत्व को टिके रहने या खुद को और समृद्ध करने के लिए स्वयं में लोच बनाए रखना होता है। ऐसा ही हिंदी के साथ हो रहा है। कृतिदेव फोंट के साथ हिंदी यूनीकोड से मिली और डिजीटल युग में हिंदी ने बड़े-बड़े अखबारों का दायरा तोड़कर मोबाईल गजेट में प्रवेश किया। अब हिंदी मोबाईल के कीपैड में तो मिल ही जाती है साथ इंटरनेट के माध्यम से पढ़ी और समझी जाने वाली सामग्री भी हिंदी में मिल जाती है। जिससे नए जमाने का पाठक भी हिंदी पर बना हुआ है। यही नहीं डिजीटल रीडिंग से अब यह सफर डिजीटल लिसनिंग की ओर बढ़ रहा है और मोटी जिल्द वाले अधिक पृष्ठों में ढली हिंदी आॅडियो बुक में समा रही है। अब तो ई बुक का भी चलन देखने को मिल रहा है जिससे व्यक्ति कम समय में ही हिंदी में सूचनाऐं प्राप्त कर पा रहा है।

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