दिल्ली: हिमा दास . ये वो नाम है जो आज सबकी जुबां पर है. ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर इतिहास रचने वाली देश की बेटी गांव से आती है और दुनिया पर छा जाती है जिस पर आज हर किसी को नाज है. हिमा के पड़ोसी की मानें तो रेकॉर्ड तोड़ने से पहले वह बुराई के खिलाफ आवाज उठाकर अपने गांव में मौजूद शराब की दुकानों को भी 'तोड़' चुकी हैं. महज 18 साल की हिमा ने AIFF अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीता है. वह महिला और पुरुष दोनों ही वर्गों में ट्रैक इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय भी बन गई हैं.
हिमा के पड़ोसी ने बताया वह सिर्फ वर्ल्ड क्लास की ऐथलीट नहीं हैं, बल्कि वह अपने आसपास हो रही बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाना भी जानती हैं. पड़ोसी ने बताया कि उनके गांव में शराब की दुकानें थीं, जिन्हें हिमा ने लोगों के साथ मिलकर ध्वस्त करवाया था. पड़ोसी ने बताया, 'वह लड़की कुछ भी कर सकती है. वह गलत के खिलाफ बोलने से नहीं डरती. वह हमारे और देश के लिए रोल मॉडल बन चुकी है.' वहां के लोग हिमा को 'ढिंग ऐक्सप्रेस' कहते हैं. हेमा के पिता रंजीत दास ने बताया कि मेडल जीतने के बाद हिमा ने उन्हें फोन करके कहा कि जब आप लोग सो रहे थे, तब मैंने इतिहास रच दिया. इसपर हम लोगों ने कहा कि कोई नहीं सोया था और सब जागकर टीवी पर उसकी रेस ही देख रहे थे. उन्होंने कहा, 'वह बिल्कुल पर्वत की तरह सख्त है. मुझे गांव से बाहर उसे अकेले ट्रेन में भेजने में डर लगता था. लेकिन वह कहती थी चिंता मत करो. इसे देखकर मुझे प्रेरणा मिलती थी.'
हिमा की कहानी -
हिमा ने महज दो साल पहले ही रेसिंग ट्रैक पर कदम रखा
उन्हें अच्छे जूते भी नसीब नहीं थे
में 6 बच्चों में सबसे छोटी हिमा पहले लड़कों के साथ पिता के धान के खेतों में फुटबॉल खेलती
सस्ते स्पाइक्स पहनकर जब इंटर डिस्ट्रिक्ट की 100 और 200 मीटर रेस में हिमा ने गोल्ड जीता तो कोच निपुन दास भी हैरान रह गए
वह हिमा को गांव से 140 किमी दूर गुवाहाटी ले आए, जहां उन्हें इंटरनैशनल स्टैंडर्ड के स्पाइक्स पहनने को मिले
हिमा का जन्म असम के नौगांव जिले के एक छोटे से गांव कांदुलिमारी के किसान परिवार में हुआ
पिता रंजीत दास के पास महज दो बीघा जमीन है जबकि मां जुनाली घरेलू महिला हैं
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