स्वस्थ रहने के लिए सोना ज़रूरी
स्वस्थ रहने के लिए सोना ज़रूरी
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पहले ऐसा माना जाता था कि अनिद्रा बढती उम्र की समस्या है, पर अब स्कूली बच्चे भी तेजी से इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। यह उनकी सेहत और मानसिक विकास के लिए बहुत नुकसानदेह है। इसलिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाते हुए इससे बचाव बेहद जरूरी है। बच्चों की अच्छी सेहत के लिए हम उनके खानपान पर तो पूरा ध्यान देते हैं, पर यह भूल जाते हैं कि पौष्टिक आहार की तरह अच्छी नींद भी उनके लिए बेहद जरूरी है। हाल ही में अमेरिकन स्लीप फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि स्कूली बच्चों के लिए कम से कम आठ-नौ घंटे की नींद जरूरी है, पर चिंताजनक बात यह है कि भारत सहित विश्व के ज्य़ादातर देशों में बच्चों को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही। इससे वे स्लीप एप्निया यानी अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं।

कहां खो गई नींद : भारतीय समाज की बदलती जीवनशैली ने बच्चों की नींद को भी प्रभावित किया है। खास तौर पर महानगरों के ज्यादातर एकल परिवारों में माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं। ऐसे में शाम को ऑफिस से घर लौटने में अकसर उन्हें देर हो जाती है। ऐसे में मां को होमवर्क और डिनर खत्म करवाने की जल्दबाजी रहती है। लगातार देर तक जागने से बच्चों की बॉडी क्लॉक भी उसी तरह सेट हो जाती है। अगर सही समय पर जबरदस्ती सुलाने की कोशिश की जाए तो भी उन्हें नींद नहीं आती।

अनमोल है नींद : नींद प्रकृति की ओर से दिया गया नि:शुल्क, लेकिन बेहद कीमती उपहार है। वैसे तो नींद सभी के लिए जरूरी है, लेकिन बच्चों के स्वस्थ शारीरिक-मानसिक विकास में अच्छी नींद का महत्वपूर्ण योगदान होता है। नींद की अवस्था में उनके पाचन तंत्र को सही ढंग से काम करने अवसर मिलता है। नींद के दौरान ही लिवर और किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंग शरीर में मौजूद नुकसानदेह तत्वों को छांट कर अलग रखने और उन्हें शरीर से बाहर निकालने की तैयारी कर रहे होते हैं।

टीनएजर्स में बढती समस्या : छोटी उम्र में बच्चों के सोने-जागने की रुटीन को नियंत्रित करना पेरेंट्स के लिए काफी हद तक आसान होता है, लेकिन जैसे ही बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं उनकी नींद में कई तरह की बाधाएं आने लगती हैं। फिर पेरेंट्स के लिए उनके स्लीपिंग पैटर्न को बदल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। पढाई के बढते बोझ और मोबाइल-इंटरनेट पर दोस्तों के साथ देर रात तक चैटिंग की आदत की वजह से उनमें नींद को टालने की आदत विकसित हो जाती है।

क्या है नुकसान : बच्चे तो नासमझ होते हैं। इसलिए पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे उन्हें नींद की कमी से होने वाले नुकसान के बारे में समझाएं। नींद पूरी न होने की वजह से बच्चों के व्यवहार में चिडचिडापन, कमजोर स्मरण शक्ति, उत्साह में कमी, ध्यान केंद्रित न कर पाना, निर्णय लेने की क्षमता में कमी, कमजोर पाचन-शक्ति, सिरदर्द, आंखों में जलन और सुस्ती जैसे लक्षण नजर आते हैं। 

इससे होगी आसानी : बच्चों का स्लीपिंग पैटर्न सुधारने के लिए डिनर की शुरुआत जल्दी करें ताकि उन्हें सही समय पर सुलाना संभव हो। -घर में टीवी का स्विच ऑफ करने का एक निश्चित समय निर्धारित कर दें और ध्यान रहे कि परिवार के सभी सदस्य समान रूप से उसका पालन करें। -टीनएजर्स के लिए इंटरनेट और मोबाइल के संबंध में भी यही नियम बनाएं। -अगर बच्चे देर रात तक जागने का आग्रह करें तो उन्हें सिर्फ वीकएंड में ही ऐसा करने की इजाजत दें और संडे की रात उनसे जल्दी सोने को कहें। 

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