मोहम्मद रफ़ी जन्मदिन विशेष : मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
मोहम्मद रफ़ी जन्मदिन विशेष : मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
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माया नगरी मुम्बई में रोज हजारों की संख्या में ऐसे युवा आते हैं जो बॉलीवुड में अपने आपको स्थापित करने का सपना लेकर अपना घरबार छोड़ कर चले आते हैं। इनमे से कुछ ही होते हैं जिनके सपनों को पंख मिलते हैं और बाकी लोग अपने बिखरे सपनों को समेटकर फिर से अपने घर की ओर निकल पड़ते हैं। अगर बॉलीवुड की म्यूजिक इंडस्ट्री की बात की जाए तो मोहम्मद रफ़ी वो नायाब हीरा है जिसकी चमक कभी भी कम नहीं हो सकती। उनके लिए तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि 'हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है ! बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा ! मोहम्मद रफी का जन्म अमृतसर के पास बसे गांव कोटला सुल्तान सिंह में हाजी अली मोहम्मद के घर हुआ। बचपन से ही मोहम्मद रफी को गाने का बहुत शौक था। बचपन में रफ़ी साहब गांव में घूमने वाले फकीर द्वारा बोले जाने वाली बोलियों की नक़ल उतारते थे।

रफ़ी साहब के बड़े भाई मोहम्मद दीन का एक दोस्त था जिसका नाम अब्दुल हमीद था। उन्होंने ही सबसे पहले रफी के टैलेंट को पहचाना और गाने के लिए प्रोत्साहित किया। अब्दुल हमीद ने ही रफ़ी साहब के घर वालों को समझाया और इस तरह वो रफी को लेकर मुंबई आए। रफ़ी साहब ने पहला गाना पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए गाया था। यह फिल्म 1944 में रिलीज हुई थी और इसी वर्ष ऑल इंडिया रेडियो लाहौर ने उन्हें अपने यहां काम करने का न्यौता दिया। बॉलीवुड मंह उन्हें संगीतकार नौशाद ने पहले आप नाम की फ़िल्म में गाने का मौका दिया और इसके बाद आने वाले सालों में रफ़ी पूरी आवाम के दिलों में ऐसे बसे की आज भी उनके नगमे सुनकर अनायास ही उनकी याद आ जाती है।

उनके गानों के बारे में बाते करना शायद इस महान हस्ती की तौहीन होगी इसलिए आज उनके जन्मदिन के अवसर आपको कुछ ऐसी बाते बतातें हैं जिन्हें शायद बहुत कम लोग जानते हैं। आजा आजा गाना रफ़ी साहब का बहुत पॉपुलर सॉन्ग है इस गाने के बारे में काफ़ी मजाकिया याद जुड़ी है। गाने के बारे में सिंगर उषा टिमोथी ने बताया कि एक स्टेज शो के दौरान आजा आजा गीत में सिर्फ 8 बार है और आ आ आजा से गीत को खत्म करना था लेकिन रफी साहब हमेशा ही गिनती भूल जाते थे इसलिए मैंने उन्हें सलाह दी जब मैं आपसे दूर जाने लगूं तो समझ लेना कि अब रुकना है।

उस वक्त तो उन्होंने मुझे ठीक है कहा लेकिन जब गाने का वक्त आया तो फिर से भूल गए और मैं जाने लगी तो आजा आजा का जाजा जाजा हो गया और दर्शकों ने भी इसमें बड़ा लुत्फ उठाया। महान एक्टर दिलीप कुमार ने भी कहा था कि कभी किसी ने रफ़ी साहब को किसी पर नाराज होते नहीं देखा उन्हें कोई अहंकार नहीं था हर दिल अजीज और सादा मिजाज इंसान थे। रफी साहब बहुत दरियादिल थे। वो अपने पड़ोस में रहने वाली एक विधवा औरत को कई सालों तक हर महीने मनी आर्डर भेजते थे। जब इस विधवा औरत के पास मनीआर्डर आना बंद हो गया तो वह पोस्ट ऑफिस गई और तब जाकर उसे पता चला यह मनीआर्डर उन्हें रफी साहब भेजते थे जो अब इस दुनिया में नहीं रहे। रफी साहब ने अपने पूरे कैरियर के दौरान 517 अलग-अलग मूड और मौकों को दर्शाने वाले करीबन 26000 गाने गाये और उन्होंने तकरीबन हर प्रांतीय भाषा में गाने गाये।

रफी साहब ने हरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय से अंग्रेजी सीखी और अंग्रेजी में 2 गाने भी गाये। मन्ना डे कहते थे कि मैं, किशोर दा और अन्य सिंगर हमेशा नंबर दो की कुर्सी के लिए लड़ते थे क्योंकि नंबर एक की कुर्सी पर तो ऐसा ही हमेशा से ही मोहम्मद रफी विराजमान थे। बकौल आर डी बर्मन, जब मेरे गीत की रिकॉर्डिंग होती थी तो रफी साहब भिंडी बाजार से हलवा लाते और हम सब एक साथ बैठकर उसे खाते थे। 1975 में रफी साहब काबुल गए और वहां पर उन्होंने कुछ फ़ारसी सोलो और अफगान महिला सिंगर जिला के साथ कुछ डुएट सांग भी गाये। जिस गायक ने पूरी जिंदगी अपने नगमो से हिंदुस्तान की आवाम के दिलों पर राज किया वह गायक मरते दम तक रियाज करता रहा। 31 अगस्त 1980 को रफी साहब मां काली के एक बंगाली भजन का रियाज कर रहे थे और उसी वक्त उनकी छाती में दर्द होने लगा। इसी दिन उनकी मृत्यु हुई।

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