ऐसे हुई थी भगवान हनुमानजी की मृत्यु लेकिन...
ऐसे हुई थी भगवान हनुमानजी की मृत्यु लेकिन...
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आप सभी ने सूना ही हो होगा कि रामायण में हनुमानजी की मौत नहीं हुई थी उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है और वह आज भी जीवित है. ऐसे में हनुमान जी को भगवान शिव का अंशावतार और चिरंजीवी भी कहा गया है. आइए जानते हैं एक कथा जो आपको यह बताएगी कि हनुमान जी की मौत हो गई थी लेकिन उसके 6 महीने बाद वह फिर जिन्दा हो गए थे. जी हाँ, आइए जानते हैं.

कथा मिलती है- कि एक बार प्रभु श्रीराम विलंका राक्षसराज सहस्‍शिरा के वध के लिए गए होते हैं. लेकिन कई दिनों तक जब श्रीराम वापस नहीं लौटे तो माता सीता काफी परेशान होती हैं और हनुमान जी को उनका पता लगाने के लिए भेजा जाता है. हनुमान जी श्रीराम की खोज में विलंका पहुंचते हैं. वहां राक्षसराज की परेशानी देखकर वह समझ जाते हैं कि उनके प्रभु विलंका में ही हैं. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी उन्‍हें श्रीराम का पता नहीं चल पाता. इसके बाद वह राजभवन से बाहर निकलकर नगर में श्रीराम की खोज में निकलते हैं. उधर राक्षसराज ने विलंका के द्वार पर एक ग्रामदेवी को नियुक्‍त कर रखा था जो शत्रुओं को पहचान कर उनका अंत कर देती थी. इसके अलावा उत्‍तर द्वार पर स्थित विष का सरोवर था.

वहीं उसके दक्षिण की ओर एक और तालाब था. जब भी कोई व्‍यक्ति मित्र भाव से दुर्ग में प्रवेश करता था और उस सरोवर या तालाब का जल पीता था तो वह आसानी से दुर्ग में प्रवेश कर लेता था. लेकिन शत्रुभाव से प्रवेश करने और जल का पान करने वाले व्‍यक्ति की मृत्‍यु हो जाती थी.क‍था मिलती है कि जब हनुमान जी उत्‍तरी द्वार पहुंचे और रामजी के बारे में सोचने लगे. उसी समय ग्रामदेवी की भेंट पवनपुत्र से हुई. उन्‍होंने पहचान लिया कि यह तो श्रीराम के सेवक है. इसके बाद ग्रामदेवी हनुमानजी के गले में बैठ गई जिससे हनुमानजी का गला प्यास से सूखने लगा. पवनपुत्र ने जलपान किया और जल ग्रहण करते ही उनके पूरे शरीर में विष फैल गया और उन्‍होंने अपने प्राण त्‍याग दिए. काफी दिन बीत गए, श्रीराम का भी कुछ पता नहीं चल रहा था और पवनपुत्र का भी. ऐसे में सभी देवताओं ने पवनदेव से पूछा कि आपका पुत्र कहां हैं?

वह भी काफी परेशान हुए कि कहां हैं हनुमान. सबने ढूढ़ना शुरू किया तो बृहस्‍पतिदेव ने बताया कि हनुमानजी की विलंका में मृत्‍यु हो चुकी है. इसके बाद वायुदेव दुखी हो गए. सृष्टि में वायु का संचार रुक जाने से जीवों के प्राण संकट में आ गए. यह स्थिति देखकर सभी देवताओं ने वायुदेव से कहा कि वह सभी उनके पुत्र को जीवित कर देंगे. लेकिन वह अपना क्रोध शांत कर लें. इसके बाद कथा मिलती है कि सभी देवता विलंका गए और अमृत वर्षा और संजीव‍नी मंत्र से हनुमान जी को पुर्नजीवित कर दिया. इस तरह हनुमान जी 6 माह के बाद फिर से जीवित हो उठे.

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