मुगल शासक अकबर के कारण लिखी गई थी हनुमान चालीसा, बड़ी रोचक है कहानी
मुगल शासक अकबर के कारण लिखी गई थी हनुमान चालीसा, बड़ी रोचक है कहानी
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संकट के समय वैदिक ब्राह्मणों द्वारा हमें हनुमान चलीसा करने की सलाह दी जाती है। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि कलयुग में हनुमान जी सबसे जल्दी प्रसन्न हो जाने वाले जीवंत देवता हैं। आप सभी को बता दें कि जीवन की हर समस्या का समाधान हनुमान चालीसा के द्वारा कर सकते है। जी हाँ और कहा जाता है हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आपको बता दें कि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा,वीर हनुमान को प्रसन्न करने के लिए सबसे सरल और शक्तिशाली स्तुति है। जी हाँ और उन्होंने हनुमान जी की स्तुति में कई रचनाएं रची जिनमें हनुमान बाहुक,हनुमानाष्टक और हनुमान चालीसा प्रमुख हैं। जी दरअसल हनुमान चालीसा की रचना के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

कैसे हुई हनुमान चालीसा की रचना- कहा जाता है यह घटना उस दौरान की है जब भारत पर मुगल सम्राट अकबर का राज्य था। एक बार सुबह के समय एक महिला ने पूजा से लौटते हुए तुलसीदास जी के चरण स्पर्श किए। तुलसीदासजी ने उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद मिलते ही वह फूट-फूट कर रोने लगी और रोते हुए उसने बताया कि मेरे पति का अभी-अभी देहांत हो गया है और आप तो रामजी के परम भक्त है आप उन्हें जीवित कर दीजिए। इस बात का पता लगने पर भी तुलसीदासजी तनिक भी विचलित न हुए और वे अपने आशीर्वाद को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे। क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान भली भाँति था कि भगवान राम बिगड़ी बात संभाल लेंगे और उनका आशीर्वाद खाली नहीं जाएगा।

उन्होंने उस स्त्री सहित वहां उपस्थित सभी को राम नाम का जाप करने को कहा। सभी ने ऐसा ही किया और वह मरा हुआ व्यक्ति राम नाम जप के प्रभाव से जीवित हो उठा। वहीँ जब यह बात बादशाह अकबर को पता लगी तो उसने अपने महल में तुलसीदास को बुलाया और भरी सभा में उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे कोई चमत्कार करने को कहा। ये सब सुन कर तुलसीदास जी ने अकबर से बिना डरे कहा कि वो कोई चमत्कारी साधु नहीं हैं, सिर्फ श्री राम जी के भक्त हैं। अकबर इतना सुनते ही क्रोध में आ गया और उसने उसी समय सिपाहियों से कह कर तुलसीदास जी को लोहे की जंजीरों से बंधवा दिया।

तुलसीदास जी ने तनिक भी प्रतिक्रिया नहीं दी और राम का नाम जपते हुए कारागार में चले गए। उन्होंने कारागार में भी अपनी आस्था बनाए रखी और वहां रहकर ही हनुमान चालीसा की रचना की और 40 दिन तक उसका निरंतर पाठ किया। चालीसवें दिन एक चमत्कार हुआ। हजारों बंदरों ने एक साथ अकबर के महल पर हमला बोल दिया। अचानक हुए इस हमले से सब अचंभित हो गए। अकबर एक समझदार बादशाह था इसलिए उसे कारण समझते देर न लगी और अब उसे भक्ति की महिमा समझ में आ गई। उसने उसी क्षण तुलसीदास जी से क्षमा मांग कर कारागार से मुक्त किया और आदर सहित उन्हें विदा किया। इतना ही नहीं अकबर ने उस दिन के बाद तुलसीदास जी से जीवनभर मित्रता निभाई। ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी ने तुलसीदास जी को आशीर्वाद दिया कि जो भक्त कलयुग में श्रद्धा भक्ति से इस पाठ को करेंगे उनके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।

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