हर साल मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा का पर्व इस साल 13 जुलाई को है। ऐसे में अगर हम हनुमानजी के बारे में बात करें तो उनका कोई शिष्य नहीं था लेकिन फिर भी वह किसी के गुरु हुए। आइए जानते हैं कैसे और क्यों?
हनुमानजी ने विभीषण को मार्ग दिखाया : कहा जाता है विभीषण श्रीराम के भक्त थे। जब हनुमानजी लंका पहली बार गए तो उन्होंने यह जाना तो उन्होंने विभीषण को मार्ग बताया और विभीषण के गुरु बनकर ही उन्होंने प्रभु श्रीराम से विभीषण को मिलाया। जी हाँ और ऐसा कहा जाता है हनुमानजी की सबसे पहली स्तुति विभीषण ने ही की थी। आपको पता हो हनुमानजी ने ही सतयुग में राजा इंद्रद्युम्न को प्रभु का मार्ग बताकर भगवान जगन्नाथ मंदिर की स्थापना कराई थी। वहीं प्राचीनकाल में वहां पर श्रीराम की ही पूजा होती थी।
अर्जुन और भीम के गुरु : महाभारत काल में हनुमानजी ने भीम और अर्जुन का घमंड चकनाचूर करके उन्हें श्रीराम की महिमा बताई थी। वहीं उसके बाद में हनुमानजी ने दोनों की ही उचित मार्गदर्शन करके महाभारत का युद्ध में विजयी दिलाई थी। कहा जाता है हनुमानजी स्वयं अर्जुन की ध्वजा पर बैठकर युद्ध लड़े थे और उन्होंने श्रीकृष्ण के कहने पर ही सत्यभामा, गरुढ़, बलराम और चक्र के घमंड को चकनाचूर कर दिया था।
माधवाचार्य : कलयुग में हनुमानजी ने श्रीराम के परमभक्त माधवाचार्य को साक्षात दर्शन देकर प्रभु श्रीराम का मार्ग बताया था।
तुलसीदासजी : भक्त तुलसीदासजी को गुरु बनकर हनुमानजी ने श्रीराम से मिलवाया था।
समर्थ रामदास: हनुमानजी के परमभक्त और छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ने हनुमानजी का साक्षात्कार करके ही संपूर्ण देश में अखाड़ों की स्थापना की थी।
जिसका कोई नहीं उसके हनुमान गुरु : कहा जाता है अगर कोई गुरु नहीं हो तो हनुमानजी को अपना गुरु बना लेना चाहिए।
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