गुरु पूर्णिमा: कौरव-पांडवों के गुरु थे द्रोणाचार्य, जानिए उनकी जन्म कथा
गुरु पूर्णिमा: कौरव-पांडवों के गुरु थे द्रोणाचार्य, जानिए उनकी जन्म कथा
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हमारे धर्म ग्रंथों में अनेक गुरुओं के बारे में बताया गया है। इसी लिस्ट में शामिल थे एक गुरु द्रोणाचार्य। कहा जाता है ये महाभारत के एक प्रमुख पात्र थे। जी हाँ और महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य देवताओं के गुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। कहा जाता है इन्होंने भगवान परशुराम से अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की थी। इसी के साथ कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीष्म के बाद कौरवों का सेनापति गुरु द्रोणाचार्य को ही बनाया गया था। जी दरअसल 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है, ऐसे में इस खास मौके के पहले हम आपको द्रोणाचार्य से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं।

भरद्वाज मुनि के पुत्र थे द्रोणाचार्य- महाभारत के अनुसार, एक बार महर्षि भरद्वाज गंगा स्नान करने गए तो उन्होंने वहां घृताची नामक अप्सरा को जल से निकलते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। ऋषि ने अपने वीर्य को द्रोण नामक एक बर्तन में एकत्रित कर लिया। उसी बर्तन से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था। द्रोणाचार्य जब युवा हुए तो पिता के कहने पर ये भगवान परशुराम के पास गए और उनसे अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की, साथ ही कई दिव्यास्त्र भी। इनका विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था। इनका पुत्र महापराक्रमी अश्वत्थामा है, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये आज भी जीवित है।

जब राजा द्रुपद ने किया द्रोणाचार्य का अपमान- कहा जाता है बाल्यकाल में द्रोणाचार्य और राजा पृषत के पुत्र द्रुपद गुरुकुल में साथ रहकर पढ़ाई करते थे। द्रोण व द्रुपद अच्छे मित्र थे। एक दिन द्रुपद ने द्रोणाचार्य से कहा कि "जब मैं राजा बनूंगा, तब तुम मेरे साथ रहना। मेरा राज्य, संपत्ति और सुख सब पर तुम्हारा भी समान अधिकार होगा।" कुछ समय बाद द्रुपद पांचाल देश का राजा बना। इधर द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हो गया, जिनसे अश्वत्थामा नामक पराक्रमी पुत्र हुआ। एक दिन अश्वत्थामा दूध पीने के लिए मचल गया, लेकिन गाय न होने के कारण द्रोणाचार्य उसके लिए दूध का प्रबंध न कर पाए। तब द्रोणाचार्य बचपन में किए वादे को ध्यान में रखकर द्रुपद से मिलने गए। वहां राजा द्रुपद ने उनका बहुत अपमान किया। अपमान की अग्नि में जलते हुए द्रोणाचार्य हस्तिनापुर आ गए और भीष्म के कहने पर कौरव और पांडवों का अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देने लगे।

द्रोणाचार्य ने मांगी गुरुदक्षिणा- कहा जाता है जब कौरव व पांडवों की शिक्षा पूरी हो गई तब द्रोणाचार्य ने उनसे गुरुदक्षिणा के रूप में राजा द्रुपद को बंदी बनाकर लाने को कहा। जी हाँ और ऐसा होने पर पहले कौरवों ने राजा द्रुपद पर आक्रमण कर उसे बंदी बनाने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। वहीं बाद में पांडवों ने अर्जुन के पराक्रम से राजा द्रुपद को बंदी बना लिया और गुरु द्रोणाचार्य के पास लेकर आए। उस समय द्रोणाचार्य ने उसे आधा राज्य लौटा दिया और आधा अपने पास रख लिया और इस तरह गुरु द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद से अपने अपमान का बदला ले लिया।

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