जब 10 लाख सैनिकों पर भारी पड़े थे 43 सिख, जानिए चौकाने वाला किस्सा
जब 10 लाख सैनिकों पर भारी पड़े थे 43 सिख, जानिए चौकाने वाला किस्सा
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भारत के इतिहास में कई ऐसे किस्से हैं जो चौकाने वाले हैं। इसी में से एक किस्सा है चमकौर युद्ध (Battle of Chamkaur) का किस्सा। जी दरअसल चमकौर युद्ध सन् 1704 में लड़ा गया था और इस युद्ध में मुगलों के 10 लाख सैनिकोंं को गुरु गोबिन्द सिंह समेत 43 सिखों ने मिलकर धूल चटा दी थी। जी हाँ, गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) सिखों के दसवें और आखिरी गुरु थे और उन्होंने ही खालसा पंथ की स्थापना की थी और अपना पूरा जीवन लोगों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था।

आप सभी को बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह एक कुशल योद्धा थे। जी दरअसल उनका मानना था कि दुश्मन से भिड़ने पर पहले साम, दाम, दंड और भेद का सहारा लें और सही रण​नीति बनाने के बाद ही युद्ध लड़ें। वहीं चमकौर युद्ध युद्ध उनकी इसी सोच का उदाहरण है। ऐसे में बीते दिनों गुरु गोबिंद सिंह की जयंती धूमधाम से मनाई गई। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं गुरु गोबिन्द सिंह की बहादुरी की बेहतरीन वीर गाथा।


मुगलों द्वारा धर्म परिवर्तन किए जाने का किया विरोध- 1704 के आसपास मुगलों का दमन चरम पर था। तब वे जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन कराने में लगे हुए थे। उस समय गुरु गोबिंद सिंह ने इसका विरोध किया और मुगलों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मुगल उन्हें शिकस्त देने में नाकाम हो चुके थे और हर हाल में उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आनंदपुर साहिब को घेर लिया। उन्हें अंदाजा था कि आनंदपुर साहिब में ज्यादा राशन पानी नहीं बचा है। कुछ दिन बाद गुरू गोबिन्द सिंह को इसके लिए बाहर आना ही पड़ेगा। तब वे उन्हें पकड़ लेंगे। लेकिन गुरु गोबिन्द सिंह मुगलों की सेना को चकमा देकर वहां के लोगों को साथ लेकर वहां से निकल गए।

मुगलों से बचकर चमकौर पहुंचे 43 सिख- गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर साहिब के लोगों को लेकर सिरसा नदी पर पहुंचे। उस समय नदी का उफान चरम पर था। ऐसे में नदी को पार करते हुए तमाम लोग बह गए। सिर्फ गुरु गोबिन्द सिंह के दो बेटे और 40 सिख यानी कुल 43 लोग बचे थे। वे बुरी तरह थक चुके थे और सुरक्षित जगह की तलाश में थे। इस दौरान वे चमकौर पहुंचे और वहां कच्ची हवेली में गुरु गोबिंद सिंह सिखों के साथ वहां रुके। जब नदी में पानी का बहाव कम हुआ तो 10 लाख सैनिकों के साथ मुगल सेना ने उस कच्ची हवेली की घेराबंदी कर दी और गुरु गोबिंद सिंह को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। मुगलों को यकीन था कि अब गुरु गोबिन्द सिंह चाहकर भी इतनी बड़ी सेना को शिकस्त नहीं दे सकते। लेकिन गुरु जी को जान देना मंजूर था, लेकिन घुटने टेकना नहीं।

गुरु जी ने इस तरह युद्ध की बनाई रणनीति- गुरु गोबिंद सिंह ने अपने सभी सिख साथियों को युद्ध के लिए राजी किया और उन्हें छोटे छोटे समूह में बांट दिया। जब मुगलों ने उन्हें ललकारा तो गुरु गोबिन्द सिंह ने सिखों के समूह को एक एक करके तलवार, भालों और तीरों के साथ वहां भेजा। उन सिखों ने मुगलों का डटकर सामना किया और आधी से ज्यादा सेना को खत्म कर दिया। इस दौरान तमाम सिख लड़ते लड़ते शहीद हो गए। गुरु गोबिन्द सिंह और उनके दो साथी बचे थे। गुरु गोबिन्द सिंह वहां से छुपकर नहीं जाना चाहते थे इसलिए उन्होंंने मुगल सैनिकों को ललकारते हुए आवाज लगाई कि मैं जा रहा हूं, हिम्मत है तो पकड़ लो।

सूझबूझ से सारी सेना को कर दिया था ढेर- इस दौरान उन्होंने दुश्मन सेना के उन सैनिकोंं को मार गिराया जो मशाल लेकर खड़े थे। मशालें जमीन पर गिरकर बुझ गईं। चारों तरफ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा हो गया था। ऐसे में सैनिक आपस में लड़कर मर गए। जब सुबह वजीर खान ने नजारा देखा तो सेना खत्म हो चुकी थी और गुरु गोबिन्द सिंह वहां से निकलकर भाग चुके थे।

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