भारतीय कोचों को मन्यता न मिलने पर ग्रांडमास्टर रमेश ने जताई नाराज़गी, कही यह बात
भारतीय कोचों को मन्यता न मिलने पर ग्रांडमास्टर रमेश ने जताई नाराज़गी, कही यह बात
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AICF के मुख्य चुनावकर्ता पद से हाल ही इस्तीफा देने वाले ग्रैंडमास्टर आर बी रमेश ने शनिवार को सरकार से घरेलू कोचों को मान्यता मिलने में कमी की निंदा करते हुए कहा कि देश को कई पदक विजेता खिलाड़ी देने के बाद भी राष्ट्रीय पुरस्कारों में उनको अनदेखा करता है. जंहा चेन्नई के रमेश युवा महान खिलाड़ी आर प्राग्गाननंधा, उनकी बहन वैशाली, राष्ट्रीय चैंपियन अरविंद चितम्बरम और कार्तिकेयन मुरली को कोचिंग दे रहे है. उन्होंने विरोधी टीमों के अधिकारियों के कथित हस्तक्षेप का हवाला देते हुए बीते vमंगलवार को AICF के मुख्य चुनावकर्ता के पद से इस्तीफा दें चुके है. उन्होंने कई ट्वीट करते हुए कहा, '' टीम इंडिया के कोच या इंडिया के खिलाड़ियों के कोच के पुरस्कार के बारे में जितना कम बताया जाए उतना ठीक होगा. बीते 15 सालों में मुझे पदक विजेता खिलाड़ी तैयार करने के लिए कोई पुरस्कार नहीं दिया गया.''

उन्होंने कहा, '' नीचे दी गयी उपलिब्धियों के बाद भी मुझे केन्द्र सरकार ने मुझे कोई पुरस्कार नहीं दिया. 1. विश्व युवा पदक = 34, 2. एशियाई युवा पदक = 40, 3. राष्ट्रमंडल पदक = 23, 4. राष्ट्रीय खिताब = 36, 5. एशियाई सीनियर पदक = 5, 6. शतरंज ओलंपियाड में कांस्य पदक. क्या कोई नीति है? '' रमेश ने इंडिया के कोचों को अपने विदेशी समकक्षों की तुलना में कम पारिश्रमिक प्राप्त करने की पूर्व प्रणाली की निंदा की जिसे खेल मंत्रालय ने हाल ही में खत्म करने का निर्णय किया गया. मंत्रालय ने कुछ समय पहले ही इंडिया के कोचों  को 2 लाख रुपये की वेतन की ऊपरी सीमा को हटा दिया ताकि उन्हें अपने विदेशी समकक्षों के पास ले जा सकें.

रमेश ने एक अन्य ट्वीट में कहा, '' इंडिया प्रणाली में देश के कोचों को कम आंका जा रहा है. विदेशी कोच का मतलब है कि पांच से 10 गुना अधिक फीस, कोच की क्षमता और रिजल्ट के बारे में तो भूल जाओ. उपनिवेशवाद के तहत सदियों से चली आ रही गुलाम दिमागी आज भी कई लोगों के बीच सबसे अधिक चलने वाला है.'' उन्होंने कहा, ''क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि ओलंपियाड, विश्व शतरंज चैम्पियनशिप, एशियाई चैम्पियनशिप के लिए कोच को कितनी सैलरी दी जा रही है? मुझे 'विदेशी कोच' से लगभग 10 गुना कम भुगतान किया गया. अगर मैं गलत नहीं हूं तो मैंने भी वही काम किया था जो विदेश के कोच ने किया था. इसलिए मैंने एक शिविर के बाद दूसरे के लिए इंकार कर दिया.

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