बचपन में एक कहानी सुनी थी कि सुतली के पलंग पर लेटी एक बुढ़िया समाज की विकृतियों और व्यवस्था की खामियों को लेकर अपने नाती-नतिनों संग प्रलाप करती है, मगर हर कोई यह कहते हुए उसे नजरअंदाज कर देता है कि दादी, तुम सठिया गई हो। आज यही हाल मध्यप्रदेश सरकार का है, जो महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार और अपराध को नजरअंदाज कर तरह-तरह की बयानबाजी करने से बाज नहीं आती है। राजधानी भोपाल में महिला जिम ट्रेनर रेनू ने अपने साथ हो रही छेड़छाड़ और लगातार दी जा रही धमकियों से कई बार पुलिस को अवगत कराया, लिखित शिकायत भी की, मगर पुलिस ने प्रकरण दर्ज करने से आगे कुछ भी नहीं किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि शुक्रवार की सुबह रेनू पर तेजाब फेंक दिया गया।
आज वह जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है। राजधानी में सरेराह एक पढ़ी-लिखी और सजग युवती के साथ हुई यह घटना राज्य में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और उत्पीड़न को न केवल उजागर करती है, बल्कि पुलिस के उस चेहरे को बेनकाब भी कर जाती है, जिस पर हमेशा पर्दा डालने की कोशिश होती रही है। सरकार के दावों की बात करें तो तीन दिन पहले ही मुख्यमंत्री आवास पर महिला पंचायत हुई थी। इस पंचायत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर महिला बाल विकास विभाग की मंत्री माया सिंह ने बड़ी-बड़ी बातें करने में हिचक नहीं दिखाई थी।
मुख्यमंत्री चौहान ने इस पंचायत में महिलाओं के जीवन को बदलने के लिए कई योजनाओं को अमली जामा पहनाने का भरोसा दिलाया, आर्थिक तौर पर सबल बनाने के लिए युवतियों को कर्ज दिलाने की बात की। इतना ही नहीं, नौकरियों में 33 प्रतिशत आरक्षण की पैरवी भी की गई। साथ ही महिलाओं को भरोसा दिलाया था कि सरकार उनके साथ है। मगर महिला पंचायत के तीन दिन बाद राजधानी में ही एक युवती को सिरफिरे की क्रूर हरकत का शिकार बनना पड़ा। आम आदमी पार्टी की नेहा बग्गा ने चर्चा करते हुए कहा कि राज्य की सरकार सिर्फ योजनाएं बनाती हैं, घोषणाएं करती हैं, मगर अमल नहीं होता।
यही कारण है कि महिला अपराध के मामले में मध्यप्रदेश देश में सबसे ऊपर है और महिलाएं सुरक्षित नहीं हो पाई हैं। सरकार का सारा जोर सिर्फ शोर मचाने और प्रचार पाने में होता है, महिलाओं की सुरक्षा के लिए नहीं। राज्य की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (महिला प्रकोष्ठ) अरुणा मोहन राव का कहना है कि राज्य में महिला अपराध पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई गई है, रेनू ने ऐशबाग थाने में पहले शिकायत की थी, उस पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई, इसका पता लगाया जा रहा है। वहीं राज्य की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच ने कहा कि आज जरूरत है कि महिला सुरक्षा की सिर्फ बात न हो, बल्कि उसके लिए काम भी किया जाए। पहले के दौर में समाज भी इन घटनाओं के विरोध में खड़ा होता था, आज ऐसा नहीं है, इसलिए जरुरी है कि समुदाय को आगे लाया जाए।
वह आगे कहती हैं कि महिला उत्पीड़न की घटनाओं मे इजाफा सिर्फ इसलिए हो रहा है, क्योंकि अपराधी व आरोपियों के खिलाफ सख्त और कठोर कार्रवाई नहीं की जाती। वहीं पुलिस का रवैया भी सहयोगात्मक नहीं होता। इसी का नतीजा है कि अपराधी के हौसले बुलंद हो जाते हैं। राजधानी में एक युवती के साथ हुई तेजाब फेंकने की घटना के बाद सरकार व पुलिस हरकत में आ गई है।
आने वाले समय में पुलिस अफसरों के निलंबन की कार्यवाही होगी, अपराधियों के खिलाफ मुहिम चलेगी, मगर आगे चलकर फिर वही होने लगेगा जो अब तक होता आया है। यही इस राज्य की नीयत बन गई है। भोपाल में युवती को बेवजह परेशान व छेड़छाड़ किए जाने की घटना तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र है, जो युवती पर तेजाब फेंके जाने से सामने आ गई है। राज्य के ग्रामीण और सुदूर इलाकों में तो यह सब आम है, वहां तो ऐसे मामले सामने तक नहीं आ पाते। अब देखना होगा कि आगे भी सरकार सिर्फ महिलाओं के कल्याण की बातें भर करती है या उससे आगे भी जाती है।