सरकार बदलने पर भी नहीं आए अवाम के अच्छे दिन
सरकार बदलने पर भी नहीं आए अवाम के अच्छे दिन
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आज 1 जून से कुछ नए करों के लागू हो जाने से महंगाई और बढ़ गई है. सेवा कर 15 फीसदी लागू हो जाने से अब खाना- पीना, घूमना यहाँ तक की मोबाइल पर बात करना भी महंगा हो गया है. ईधन के भावों में भी हर माह वृद्धि ही दिखाई दे रही है. दाल के आसमान छूते भावों से दाल की कटोरी खाने की थाली से गायब हो गई है.महंगाई से मध्यम और निम्न वर्ग चीत्कार रहा है, मगर उनकी आवाज को अनसुना किया जा रहा है. शायद लोकतंत्र में मतदाता की यही नियति है कि भले ही सरकार का रंग बदल जाए,लेकिन काम करने का ढंग नहीं बदलता है. ऐसे में मतदाता को अहसास ही नही होता है कि सरकार बदल गई है, क्योंकि उसके हालात में कोई अंतर ही नही आता है.

‘अच्छे दिन आ गये’ के नारे के साथ केंद्र में आरूढ़ हुई बीजेपी सरकार के दो साल पूरे होने के बाद भी हालात जस के तस नजर आ रहे हैं. एक ओर आम जनता को महंगाई से कहीं से भी राहत नहीं मिल रही है, वहीँ दूसरी ओर दो साल का जश्न मनाया जा रहा है. यह तो एक तरह से जनता का उपहास है.

वस्तुतः पूरी व्यवस्था विरोधाभासी नजर आ रही है.एक ओर प्रदेश को लगातार कृषि कर्मण अवार्ड मिल रहा है, तो दूसरी ओर किसान अपनी उपज का वाजिब दाम नहीं मिलने से किसान नाराज है. दो दिन पूर्व इंदौर कलेक्टर कार्यालय के सामने किसान प्याज की उचित कीमत नहीं मिलने से प्याज सडक पर फेंक गये.यह किसानो के असंतोष की अभिव्यक्ति थी. महिलाएं भी असुरक्षा के माहौल में जी रही हैं.

यही हाल व्यापारियों का है, नए नए करारोपण से वे भी परेशान हैं. युवा वर्ग को भी रोजगार उतने नही मिले हैं जितने प्रचारित किये जा रहे हैं. काले धन की वापसी पर प्रत्येक नागरिक के खाते में 15 लाख आने के सब्जबाग ने लोगों को खर्च करने से पहले कंगाल बना दिया है.यानी स्तिथि जस की तस है.

विडंबना देखिये एक ओर अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि सुधरी है लेकिन देश के नागरिकों की अपने ही देश में छवि नहीं बन पा रही है. उधार देने वाला हर महीने वसूली के आ रहा है लेकिन भुगतान नहीं कर पाने से उसके द्वारा बेइज्जत किये जाने से चेहरे का पानी हर महीने उतर रहा है. इसकी चिंता हमारे नीति नियंताओं को नहीं है.

अटलजी के प्रधानमंत्रित्व काल में जिस तरह ‘ इण्डिया शाइनिंग’ का नारा देकर सरकार आत्मुग्ध हो गई थी, कमोबेश वही हालात अभी भी हैं. सरकार अपनी पीठ खुद ही ठोक रही है. जबकि अवाम को अच्छे दिन का अहसास ही नही हो रहा है. फिर कैसे मानें की देश बदल रहा है.

जनता को सिर्फ महंगाई से मुक्ति, सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ त्वरित न्याय चाहिए उसे देश की प्रगति के आंकड़ों से कोई मतलब नही है. आभासी विकास से जनता का यथार्थ नही बदल रहा है, यह विचारणीय विषय है. लेकिन देश के कर्णधारों को अभी इस  पर चिंता नहीं करना है, क्योंकि अभी चुनाव दूर है. चुनाव के समय फिर किसी नए जुमले को भुना कर सत्तासीन होने की कोशिश की जाएगी. इस मामले में सभी राजनीतिक दल एक जैसे हैं. आखिर, अवाम के अच्छे दिन कब आयेंगे ?.

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