गोपाल कृष्णा गोखले की जयंती पर जानें उनके जीवन से जुड़ी खास बातें
गोपाल कृष्णा गोखले की जयंती पर जानें उनके जीवन से जुड़ी खास बातें
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आज के ही दिन जब भारत मे एक ऐसे आंदोलनकारी का जन्म हुआ था जिसने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी के साथ मिलकर कई आंदोलन किए। हालांकि ये महान हस्ती आजादी के अंतिम पलो तक हमारे साथ नहीं रहो लेकिन हां, इनका नाम आज भी उसी सम्मान के साथ लिया जाता है जैसे- मोहन दास करमचंद गांधी का लिया जाता है। इतिहास के पन्नो मे झांककर कर देखोगे तो एक नाम गोपाल कृष्ण गोखले का भी होगा। इन्हे महत्मा गांधी अपना राजनैतिक गुरु मानते थे। यह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मार्गदर्शकों के साथ साथ कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता भी थे।

इनका जन्म 9 मई 1966 मे महाराष्ट्र के कोथापुर में हुआ था। इनके पिता कृष्ण राव एक किसान थे और इनकी माता वालूबाई एक साधारण महिला थी और इनकी पत्नी सावित्रीबाई थी। आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की वजह से इन्हे इनके भाई ने पढ़ाया था। गोखले पढ़ाई मे अव्वल विद्यार्थीयो मे से एक थे। इन्होने गणित विषय के साथ मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज मे अपनी डिग्री पूरी की। गोखले को अंग्रेजी भाषा का भी काफी ज्ञान था जिसकी वजह से उन्हें पुणे के न्यू इंग्लिश स्कूल मे बतौर अध्यापक नियुक्त किया गया था, वही इस बीच गोपाल “सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी” की मदद से आम जन से भी जुड़े रहे, यह एक ऐसे निस्वार्थ सज्जन थे जिन्होंने बिना किसी मोह के अपना पूरा जीवन बस लोगो की सहायता करने मे व्यक्त कर दिया।

गोखले पहली बार सार्वजानिक रूप से 1886 मे देश के सामने आए और उन्होंने ब्रिटिश शासन के अधीन भारत के लिए पहली बार भाषण दिया जिसकी काफी सराहना की गई। उसके बाद गोखले की देशभक्ति उस समय देश के सामने आई जब उन्होंने बाल गंगाधर तिलक की साप्ताहिक पत्रिका “मराठा” मे अपना पहला लेख लिखा था। जिसके बाद गोखले को डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के सचिव के पद पर नियुक्त किया गया। उसके बाद गोखले को पुणे नगरपालिका का दो बार अध्यक्ष चुना गया। वही कुछ दिनों के लिए गोखले मुंबई विधान परिषद के एक सदस्य भी रहे जहाँ उन्होंने सरकार के खिलाफ अपनी बात रखी।

गोपाल ने 1908 इंग्लैंड ट्रिप की थी। उसके बाद वो 1912 में साऊथ अफ्रीका गए थे जहा वो महात्मा गांधी से मिले थे, और बहां उन्होंने देखा कि  गांधी भारतीयों की परिस्थिति सुधारने की कोशिश कर रहे है, वही गोखले भी उनके साथ उस नेक काम में जुट गए। गोपाल भारत से ब्रिटिश राज ख़त्म करने के लिए भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस, भारतीय कर्मचारी संस्था और कानूनी संस्थाओ से जुड़े, साथ ही उन्होंने शिक्षा प्रणाली को भी विकसित करने का प्रयास किया।

19 फरवरी 1915 यह वो काली रात जिस दिन पूरा देश रोया था। कहा जाता है कि- बारिश सिर्फ आसमान से होती है लेकिन इस दिन वर्षा को आकाश की ज़रूरत नहीं पड़ी थी। हर भारतीय की आंखो से आंसू इस तरह बह रहे थे जैसे मानो वर्षा हो रही हो। भारत ने इस एक महान व्यक्ति गोपाल कृष्ण गोखले को खोया था। इन्होने अपने जीवन के 49 साल सिर्फ देश की सेवा में बिता दिए है। इनके दाह-संस्कार पर बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि, भारत का यह हीरा, महाराष्ट्र का अनमोल रत्न, कर्मचारियों का बादशाह शाश्वत रूप से इस जमीन पर विश्राम कर रहा है। उनकी तरफ देखो और उनका अनुकरण करो”। गोखले हम सभी के लिए अमर व्यक्ति थे।

भारत में गोपाल कृष्ण गोखले एक ऐसा नाम था। जिनका सम्मान अंग्रेज भी करते थे। वही उस समय के भारतीय कमांडर-इन चीफ किचनर ने कहा था, गोखले ने यदि कोई अंग्रेजी पुस्तक नहीं पढ़ी है तो अवश्य ही वह पढने योग्य होगी ही नहीं। गोपालकृष्ण गोखले एक ऐसी विभूति जिसने भारतीय जन-जीवन में स्वाधीनता का मन्त्र ऐसा फूंका कि  अंग्रेज हिल गए। एक ऐसे राजनीतिज्ञ जिन्हें महात्मा गांधीजी जी भी अपना राजनितिक गुरु मानते थे और उनसे सलाह लेते थे।

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