सद्विचार....करें जीवन में अंगीकार
सद्विचार....करें जीवन में अंगीकार
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-संसार में आर्थिक विषमता असंगत और निन्दित है। इसमें सभी को समान ओर उचित अवसर मिलना चाहिये।
-जो मनुष्य मातृभूमि की धूल मस्तक पर धारण करते है और सदा मातृ भूमि का ध्यान रखते है वह धन्य जीवन जीने वाले अर्थात सौभाग्यशाली माने जाते है।
-द्वेष और दुर्भाव को जड़ सहित जला देना चाहिये। संसार मंे समानता और प्रेम पूर्वक रहना चाहिये।
-दीन, दुर्बल और डरपोक रहकर मनुष्य को नहीं जीना चाहिये। सर्वदा इस संसार में नृसिंह की तरह निर्भर और वीर का जीवन जीयें तो ही जीवन सार्थक हो सकता है।
-गुरूजन अपने शिष्यों को अनुशासन की शिक्षा देते है तथा नियंत्रण और व्यवस्था में रहने का उपदेश देते है।
-स्वयं अनुशासन का पालन करने वाले व्यक्ति ही दूसरों के उपर शासन की व्यवस्था रखने के कार्य में समर्थ होते है।
-गिरे हुए का उत्थान करना चाहिये और उनका कभी तिरस्कार नहीं करना चाहिये। अर्थात निम्नस्तरीय मनुष्य के साथ करूणापूर्वक भाव से ही व्यहार किया जाये।

ज्ञान मार्ग में वे ही सफल, जिन्होंने वैराग्य को सिद्ध किया

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