देव उठनी ग्यारस भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक माना जाता है. यह दिवाली के ठीक 11 दिन बाद आता है. जिसे देवशयनी ग्यारस, प्रबोधिनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से चार माह पूर्व भगवान विष्णु सहित अन्य देवता क्षीरसागर में जाकर सो जाते है. देव उठनी ग्यारस पर पूजा पाठ, तप एवं दान कार्य अदि किये जाते है, और इसी दिन दिन क्षीरसागर में सोये भगवान् विष्णु एवं अन्य देवता उठ जाते है, अतएव इसे देवउठनी ग्यारस कहा जाता है. इस चार महीने की अवधि में कोई भी कार्य जैसे- विवाह, मुंडन संस्कार, नाम करण संस्कार आदि नहीं किये जाते है. इस दिन घर-घर में गन्ना, तुलसी, भगवान् विष्णु की पूजा कर इस त्यौहार को बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है.
पूजन सामग्री-
फल, फूल, धूप, दीप, भोग, हल्दी, कुमकुम, तिल, हल्दी की गांठ, बताशा, दिये, तुलसी जी, विष्णु जी का चित्र, शालिग्राम, गणेश जी की प्रतिमा या फोटो पीला कपड़ा, कोई सुंदर रूमाल, श्रृंगार का सामान, कपूर, घी का दीपक, आंवला, चने की भाजी, सिंघाड़ा हवन सामग्री इत्यादि.
देवउठनी एकादशी की पूजन विधि-
- गन्ने की सहायता से मंडप बनाएं, सबसे पहले गणेश पूजन करें.
- चौक, रंगोली बनायें, एक पटा रखे, उस पर कपड़ा बिछाये.
- पटे पर तुलसी जी का गमला, भगवान विष्णु जी की मूर्ति स्थापित करें और शालिग्राम जी की स्थापना तुलसी जी के गमले में ही करें.
- उन्हें पीले वस्त्र चढ़ाएं, भगवान विष्णु जी को पीला वस्त्र अति प्रिय है.
- तांबे के बर्तन में भोग रखकर, भगवान को चढ़ाएं.
- लाल रंग की ओढ़नी चढ़ाएं, सुहाग का सामान तुलसी जी को अर्पित करें.
चावल ना चढ़ाएं, तिल चढ़ाये.
- गन्ने से बनाए गए मंडप को, हल्दी, कुमकुम से पूजा करें.
- देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय भगवान का पूजन शुरु करें.
- इसके बाद पकवान, मिठाई, सिंघाड़े, गन्ने से मंडप बनाए.
- विष्णु जी का पूजन पंचोपचार विधि अनुसार करें.
- देवशयनी एकादशी को रात्रि के समय एकादशी व्रत कथा पढ़ें.
- 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र से पूजा करें.
- तुलसी विवाह व्रत कथा पढ़ने के बाद हवन करें.
- कपूर, घी के दीपक से आरती करें, प्रसाद वितरण करें.