मानव की अंतरात्मा में विचारों और भावों की महत्वता होती है.मन और आत्मा की पवित्रता ही ईश्वर के दर्शन कराती है .मन के भाव से ही व्यक्ति परमात्मा तक पहुँच पाता है. यहां बिकने और खरीदने की बात कोई संसारिक माप तोल से नहीं है. बल्कि भावों और प्रेम से खरीदने से ही है .
कई बार हम लोग बाजार से या किसी मूर्तिकार के पास से भगवान की कोई मूर्ति ले आते है. उसका पूजन और ध्यान भी मन से नहीं कर पाते जो केवल एक दिखावा सा होता है. पर यदि आप अपनी अंतरात्मा से सच्चे भाव के साथ भगवान का ध्यान करते है. तो यह सात्विक सत्य है की भगवान बिन मोल ही बिक जाते है.
जरूरी नहीं की आप सुन्दर सुन्दर मूर्तियां लाये तभी उपासना संभव है. मानसिक चिंतन मनन और प्रेम से अपनी आत्मा में परमात्मा के दर्शन करना ही सबसे बड़ी अध्यात्म शक्ति है. और ऐसा करने से भगवान हमेशा के लिए बिन मोल बिक जाते है. आपके पास वह शक्ति है की यदि आप चाहें तो अपने इस सच्चे मन और भाव से भगवान को अपने बस में कर सकते है .
प्रेम ही इस जगत का आधार है ईश्वर की प्राप्ति चिंतन मनन से होती है. आपने इस जगत में बहुत से ऐसे भक्तों को देखा या उनके बारे में सुना अवश्य होगा की उन्होंने इस संसार में रहते हुए भी अपनी अंतरात्मा में भगवान के दर्शन कर लिए और परमधाम को प्राप्त कर लिया .
आपने मीरा का यह पद नहीं सुना ही होगा , माईं री मैंने गोविंद लीनो मोल। कोई कहे महंगो, कोई कहे सस्तो, मैंने लियो तराजू तोल। मीरा के विचारो और भावनाओं के कारण भगवान भी बिन मोल बिक गए .