पर्वतीय राज्यों में ग्लोबल वार्मिंग बनेगी सुखें की वजह
पर्वतीय राज्यों में ग्लोबल वार्मिंग बनेगी सुखें की वजह
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देहरादूनः ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है ये सर्वविदित है, आमूल-चूल प्रयास भी किये जा रहे जो फ़िलहाल नाकाफी है. ग्लोबल वॉर्मिंग प्रकृति के हर हिस्से नदियां, पहाड़, झरने, हवा, सभी पर असर कर रही है ऐसे में उत्तराखंड के कैलाश मानसरोवर के रास्ते में पड़ने वाले पर्वतों पर बनने वाली 'ॐ' की आकृति भी इससे अछूती नहीं रह सकी. मई-जून में दिखने वाली ॐ' की आकृति अभी दिखाई दे रही है.

वैज्ञानिक इसे ग्लोबल वार्मिग का ही परिणाम मान रहे है. दरअसल सर्दी की शुरुआत से ही हिमाचल और उत्तराखंड में बारिश के साथ बर्फ के आसार बढ़ जाते हैं, लेकिन इसके उलट इस साल बारिश और सर्दी दोनों कम रहे. क्षेत्रीय मौसम पूर्वानुमान केंद्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव के मुताबिक ठंडी लहरें और नमी युक्त हवाएं दक्षिणी यूरोप और पश्चिमी एशिया से आती हैं, जो उत्तर भारत में बारिश के मौसम का प्रमुख श्रोत हैं. इस बार पछुआ हवाओं की स्थिति पश्चिम की ओर बहुत ज्यादा सामान्य रही. इनका असर उत्तरी जम्मू-कश्मीर में ज्यादा रहा लेकिन अन्य क्षेत्रों में पछुआ हवाएं शक्तिहीन देखी गईं.

सर्दी का सीजन ख़त्म होने को है, इसके चलते सेब की फसल पर भी खतरा मंडरा रह रहा है. वहीं कम बर्फबारी गर्मियों में पानी की किल्लत का कारण भी बनेगी. इस साल उत्तराखंड में 100 फीसदी बारिश कम हुई है. अगर इस महीने भी मौसम शुष्क बना रहा तो यह 11 वर्षों में पहली बार होगा जब हिमाचल की राजधानी बिना बर्फबारी के रह जाएगी.

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