मूरत की आराधना और जिन्दा को प्रताड़ना
मूरत की आराधना और जिन्दा को प्रताड़ना
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मूरत की आराधना और जिन्दा को प्रताड़ना 

आज सवेरे जब टहलने निकला तो देखा नवरात्री पर सामने बनाए मंदिर पंडाल में माता की मूर्ति की आरती हो रही थी बच्चे, बूढ़े, जवान सब सर झुकाए शक्ति स्वरुप नारी माँ दुर्गा की आराधना पूरी आस्था, श्रद्धा और भक्तिभाव से कर रहे थे, कही कन्याओ को भोजन कराया जा रहा तो कही बड़े-बड़े बुजुर्ग, छोटी-छोटी बालिकाओ को चरण स्पर्श कर रहे | कितना मान और सम्मान है हमारे देश में, नारी का ये सोच ही रहा था,तभी आज का अख़बार हाथ में आया फ्रंट पेज पर बनारस हिन्दुविश्व विद्यालय में छात्राओ द्वारा छेड़छाड़ का विरोध करने और अपनी सुरक्षा की मांग करने पर बड़ी बेरहमी से उन पर लाठी चार्ज किया गया, पुलिस द्वारा उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए, हवाई फायर किया गया | ये पढ़कर ऐसा लगा जैसे वो छात्राऐ नही आतंकवादी है जो अपनी आबरू की सुरक्षा नही बल्कि कश्मीर की मांग कर रही है |

घटना क्या है ये तो हर अख़बार और चैनल ने पुरे मिर्च मसाले के साथ आपको सूचित कर दिया ही होगा तो फिर से राग आलापने की जरूरत नही है |
पर मैं समझ नही पा रहा था कि क्या एक लडकी की 24 घंटे सुरक्षा, लड़कियों के साथ किसी तरह की अप्रिय घटना की स्थिति में सुरक्षाकर्मियों को जवाबदेह बनाना, हॉस्टल आने वाले रास्ते में पर्याप्त रोशनी, सीसीटीवी नेटवर्क और महिला सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की मांग करना इतना बड़ा गुनाह है इस देश में ? या विश्वविद्यालय प्रशासन किसी लडकी के साथ होने वाली छेड़छाड़ या अपराध को गंभीर नही मानता या यु कह ले की बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति श्री गिरीश चंद्र त्रिपाठी भी दिल्ली जैसी निर्भया कांड के होने का इंतज़ार कर रहे है ताकि तब उन्हें नही, सरकार को कुछ कदम उठाना पड़े | और ऐसा हुआ भी हंगामा होने और विद्यार्थियों पर लाठीचार्ज होने को लेकर एक अतिरिक्त सिटी मजिस्ट्रेट, भेलूपुर सीईओ, लंका थाने के प्रभारी को हटा दिया गया था। पर क्या बर्खास्तगी या जांच इस समस्या का समाधान है,इसका जवाब, आप खुद अपने आप को दीजिये |और इससे भी बड़ी बात की उनका क्या हुआ जिन्होंने छात्राओं की शिकायत को अनदेखा किया | हर बार की तरह अपराधी अपराध कर रहा है जिम्मेदार सो रहा है और पक्ष -विपक्ष एक दुसरे पर कीचड़ फैक रहा है |

वैसे 16 दिसम्बर 2012 के बहुचर्चित बलात्कार और हत्या कांड के बाद बनाये गये निर्भया कानून, महिला हेल्प लाइन, सुरक्षा गेजेट्स जैसी सुविधा देने का आह्वान करने वाली उषा मेहरा कमीशन की सिफ़ारिशो को लागु किया गया | मगर उसके बाद क्या कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक घर की चार दिवारी से लेकर बाज़ार तक नारी सुरक्षित हो गई ? इसका मूल्यांकन जनता और जनसेवकों को करना होगा | अगर हम भारत में नारी सुरक्षा कि बात करे तो भारतीय महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने  हेतु ढ़ेर सारे कानून बनाए गए हैं. इनमें अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट-रुपण प्रतिषेध अधिनियिम 1986, गर्भाधारण पूर्व लिंग-चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध, प्रतितोष) अधिनियम 2013 प्रमुख हैं इसके अलावा दंड विधि (संशोधन) 2013 पारित किया गया और यह कानून 3 अप्रैल, 2013 को देश में लागू हो गया..लेकिन त्रासदी है कि इन कानूनों के बावजूद भी महिलाओं पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहा है. देश में बलात्कार, कन्या भ्रुण हत्या, दहेज-मृत्यु, अपहरण छेड़-छाड़ की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2014 में प्रतिदिन 100 महिलाओं का बलात्कार हुआ और 364 महिलाएं यौनशोषण का शिकार हुई और  केंद्रशासित और राज्यों को मिलाकर कुल 36735 मामले दर्ज हुए. तथा वर्ष 2015 में भारत में महिलाओं के साथ अपराध के कुल 327394 मामले दर्ज किए गए. उन मे सबसे ज्यादा अपराध उत्तरप्रदेश में (35527) दर्ज हुए. साल 2016 और 2017 में भी इनमे लगातार वृद्धि ही हो रही है |
सवाल ये उठता है कि अगर ऐसे हालत में नारी अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ उठती है तो विश्वविद्यालय प्रशासन उदासीन क्यों हो जाता है या उनकी जायज़ मांगो को पूरा करने के बजाये उन पर लाठियां  क्यों चलवाता है हद तो तब हो गई जब पुलिस ने 1200 छात्र-छात्राओं को ही दोषी मानकर उनके खिलाफ FIR दर्ज कर दी | 

क्या यही है योगी जी के सपनों का उत्तर प्रदेश इस पर बहस होना चाहिये, क्यों की अगर पुलिस-प्रशासन पीड़ित की ही आवाज़ को दबाने लगेगा तो यूपी में महिलाओ का हाल वैसा ही होगा जैसे शेरो के झुण्ड में घिरे हिरण का होता है |

ये कैसी मानसिकता है कि समाज, एक और मिट्टी कि मूर्ति के सामने सर झुकाते है पर जीती जगती नारी पर लाठिया चलाते है ? दुष्टों के विरुद्ध शस्त्र उठानेवाली माता का जयकारा लगाते है और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली नारी को अपराधी बताते है |
राज्यों से लेकर केंद्र तक केवल सरकारे बदली, लेकिन महिला सुरक्षा में कोई खास परिवर्तन नही | आज भी मंदिर कि कतारों से बाजारों तक, कॉलेज के गेट से लेकर घर की टेरेस तक राह चलते मजनुओ से लेकर चचेरे-ममेरे भाइयो तक हर जगह बच्चिया,युवतिया अश्लील शब्दों से, गंदे इशारो से और हवसभरी नज़रो से प्रताड़ित होती ही है और अगर ऐसे में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्राओं ने इस गलत के खिलाफ आवाज़ बुलंद की तो उन्हें दबाया क्यों जा रहा है ये मेरी समझ के बहार है |

ये हम सभी को सोचना होगा कि आखिर चूक कहा हो रही है |  बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय महज एक यूनिवर्सिटी नही, पुरातन भारतीय हिन्दू सभ्यता और संस्कृति  के गौरव की धरोहर है और यदि वहा पर ही महिला सुरक्षित नही तो फिर मुझे तो कोई और जगह नजर नही आती है | एक नेता के आगमन पर पुरी फाॅर्स लगाने वाले, कुछ ख्याल एक आम लड़की के शारीरिक-मानसिक सुरक्षा का भी करे तो बेहतर होगा |
सिर्फ बेटी बचाओ का नारा देने या शौचालय को इज्ज़त घर कह देने से हालत नही बदलेंगे जब तक मानसिकता विक्षिप्त है तब तक एक बहन ,बेटी,माँ, छात्रा असुरक्षित है | 

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