ट्रेन में हुए हादसा भी नहीं बदल पाया रौशन के इरादे को
ट्रेन में हुए हादसा भी नहीं बदल पाया रौशन के इरादे को
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मुंबई: कहते है हौसला बुलंद हो, तो हर मुमकिन कोशिश रंग लाती ही है। 8 साल पहले एक ट्रेन हादसे में रौशन जव्वाद ने अपने दोनों पैर गंवा दिए थे। जोगेश्वरी में हुए हादसे में अपने पैर गंवाने के बाद रौशन ने डॉक्टर बनने की ठानी। अब वह एमबीबीएस का परीक्षा फर्स्ट क्लास से पास कर सम्मान की जिंदगी जीना चाहती है।

23 साल की रौशन के पिता पश्चिमी उपनगर में सब्जी का ठेला लगाते है। वह बेटी की उपलब्धि से बेहद खुश है। उसके डॉक्टर बनने की राह में सिर्फ विकलांगता ही रोड़ा नहीं थी, बल्कि हठी नौकरशाही ने भी मुश्किलें पैदा करने में कोई कमी नहीं की। हालांकि, रौशन के सपने को साकार करने में कई लोगों ने मदद भी की। नियमानुसार, 70 प्रतिशत तक विकलांग होने पर ही मेडिकल की पढ़ाई कर सकती है।

लेकिन रौशन 88 प्रतिशत तक विकलांग हो चुकी है। एंट्रेंस एग्जाम पास करने के बाद भी जब रौशन को एडमिशन नहीं मिली तो उसने बॉम्बे हाइ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। रौशन ने बताया कि उसके इस सफर में सर्जन संजय कंथारिया ने उसकी बहुत मदद की। एक वरिष्ठ अधिवक्ता वी पी पाटिल ने उसके केस को मुफ्त में लड़ने की भी कवायद की है।

रौशन मुस्कुराते हुए बताती हैं कि कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था- जब यह लड़की रोज कोर्ट आ सकती है, तो आपको क्यों लगता है कि वह कॉलेज नहीं आ पाएगी? इस पर कॉलेज कोई जवाब नहीं दे सका।

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