विद्यालयों में शौचालय की कमी से परेशान थी छात्राएं, सरकार के अभियान से हुआ सकारात्मक परिवर्तन
विद्यालयों में शौचालय की कमी से परेशान थी छात्राएं, सरकार के अभियान से हुआ सकारात्मक परिवर्तन
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नई दिल्ली: देश में इन दिनों शौचालय को लेकर काफी बहस चल रही है। शौचालय निर्माण के लिए मुहीम चल रही है। लोगों को शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित करने के इरादे से सरकारी अनुदान का भी इंजाम किया गया है। कई नारे गढ़े गए हैं, जिनके जरिए बेटियों के मां-बाप को सलाह दी जा रही है कि जिस घर में शौचालय न हो, उस घर में बेटियों की शादी न करें। यह अभियान का प्रभाव है कि कुछ बेटियां इसलिए ससुराल छोड़कर मायके आ जाती हैं कि वहां उन्हें खुले में शौच जाना पड़ता है। इसी के साथ ही विद्यालयों में भी शौचालय ना होने के कारण छात्राओं को काफी समस्या का सामना करना पड़ता था, इसी वजह से सरकार द्वारा स्कूलों को भी हिदायत दी गई है कि वे अपने परिसर में छात्र और छात्राओं के लिए अलग अलग शौचालय का निर्माण करवाएं, ताकि बच्चों को किसी तरह की समस्या न हो।

स्कूलों में शौचालय ना होने के कारण कई छात्राएं विद्यालय जाने में भी कतराती थीं, लेकिन सरकार के अभियान के बाद से स्कूलों में छात्राओं की उपस्थिति में वृद्धि दर्ज की गई है। दरअसल, विद्यार्थियों की शिकायत थी कि फारिग होने के लिए उन्हें घर जाना पड़ता है। स्पष्ट है, इसके चलते उनकी पढ़ाई बाधित होती है। कुछ स्कूलों में शौचालय है भी तो उस पर ताला जड़ा रहता है। प्रधानाध्यापक या दूसरे शिक्षकों के लिए ही इसे खोला जाता है। कल्पना कीजिए कि किसी स्कूल में 11 सौ बालिकाएं पढ़ती हैं। उन सबके इस्तेमाल के लिए सिर्फ एक शौचालय है, उसकी सफाई भी ठीक से नहीं हो पाती है। हाल में सरकार द्वारा नए बने सरकारी स्कूल भवनों में शौचालय का प्रावधान किया गया है। फिर भी इनकी संख्या आवश्यकता से काफी कम हैं। 

पुराने जमाने के स्कूलों में तो इसका प्रावधान ही नहीं था। इसलिए कि बालिका शिक्षा की तरफ समाज का ध्यान नहीं था। अब जबकि बालकों की तुलना में बालिकाएं अधिक बढ़-चढ़कर शिक्षा की तरफ आकर्षित हो रही हैं, वह परिणाम में अव्वल हैं, स्कूलों में इनके लिए बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना सरकार का दायित्व है। 

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