भारत के जाने माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार गिरीश कर्नाड की आज पूर्णयतिथि है। आज ही के दिन उनकी मौत हो गई थी। कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा दोनों में ही इनकी लेखनी समानाधिकार से चलती है। तो आइए आज उनकी पुण्यतिथि पर जानते हैं उनसे जुडी कुछ ख़ास बातें...
विदेश से पढ़कर लौटे: कर्नाटक आर्ट कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद गिरीश इंग्लैण्ड चले गए थे और वहां उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी के थी और फिर भारत लौट आए थे। वहीं इसके बाद चेन्नई में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में सात साल तक उन्होंने काम किया था।
सात समंदर पार: कहा जाता है कि कुछ समय बाद वह शिकागो चले गए थे और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में बतौर प्रोफ़ेसर वे काम करने लगे थे। जहां गिरीश का मन वहां रमा नहीं और वे दोबारा भारत लौट आए थे। बता दें लौटने के बाद वो पूरी तरह साहित्य और फिल्मों से जुड़ गए थे और फिर उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं में कई फिल्मों का निर्माण किया था।
गिरीश के नाटक: मशहूर लेखक गिरीश कर्नाड ने पहला नाटक कन्नड़ में लिखा था और उसके बाद उसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी किया गया था। साथ ही उनके नाटकों में 'ययाति', 'तुग़लक', 'हयवदन', 'अंजु मल्लिगे', 'अग्निमतु माले', 'नागमंडल' और 'अग्नि और बरखा' काफी प्रसिद्ध रहे हैं।
पुरस्कार का भंडार: दुनियाभर में मशहूर लेखक गिरीश कर्नाड को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है और उनके पुरस्कारों की लिस्ट में 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान मिला था। साथ ही उन्हें कन्नड़ फ़िल्म ‘संस्कार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया है।
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