जी आई के चक्कर में उलझा रसगुल्ले का इतिहास
जी आई के चक्कर में उलझा रसगुल्ले का इतिहास
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ये मेरा है.....नहीं ये मेरा है....इसी पेंच में बंगाल और ओडिशा दोनों फंसे है क्योंकि दोनों ही रसगुल्ले कि जन्मभूमि अपने अपने राज्य में बता रहे है| इस पचड़े कि जड़ है ज्योग्राफिकल इंडिकेशन | वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन का सदस्य होने के नाते यह भारत में भी लागू होता है| ट्रिप्स के अंतर्गत आर्टिकल 22 से 24 में इसका जिक्र है|

ज्योग्राफिकल इंडिकेशन वह चिन्ह या नाम है जो यह बताता है कि किसी विशेष उत्पाद का उद्भव कहाँ हुआ? किस प्रकार की विशेष सामग्री या निर्माण विधि का प्रयोग किया गया है? रसगुल्ला कोई पहली विवादित नहीं है बल्कि इससे पूर्व भी काजू से निर्मित शराब व शैम्पेन को लेकर विवाद हो चुका है| 

इस जी आई में रजिस्टर्ड करने वालों में कर्नाटका के मैसूर सिल्क, कश्मीर के कालीन, दार्जिलिंग की चाय, कोल्हापुरी चप्पल, गोवा की फेनी,नागपुर के संतरे, एम पी की चंदेरी सिल्क आदि शामिल है| ज्यादातर जी आई रजिस्टर्ड वस्तुओं में खेती, हस्तकला व शिल्पकला से संबंधित सामान हैं| कुछ लोगो का मानना है की यह उचित नहीं है क्यों की इस व्यापार से होने वाले मुनाफे और लाभ से एक खास तबका वंचित रह जाता है|

इसका मुख्यालय चेन्नई में है और यहाँ रजिस्टर्ड करने के लिए आवेदक को एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरना होता है| यह 10 वर्षो के लिए वैध होता है इसके बाद इसे पुनः रीन्यू करने की आवश्यकता होती है|

बंगाल रोशोगुल्ला की जनम तिथि 1868 बता रहा है जो की दस फैमिली द्वारा सर्वप्रथम बनाई गयी,पर ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर के पुजारी इसे प्रभु का प्राचीन भोग बता रहे है| दोनों ही अपने अपने दावों के पक्षः में रिपोर्ट तैयार कर भेज रहे है| उद्भव कहीं भी हो, रसगुल्ले में खटास नहीं आनी चाहिए....पुरे भारत में रसगुल्ला उपलब्ध है, कहीं भी खाओ और मुह मीठा कर लो|

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