गणेश चतुर्थी स्पेशल: विश्व का एकमात्र मानव मुखी गणेश मंदिर
गणेश चतुर्थी स्पेशल: विश्व का एकमात्र मानव मुखी गणेश मंदिर
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सभी लोग अच्छे से जानते है की गणेश जी का मुख हाथी के मुख के समान है लेकिन क्या आप जानते है की विश्व में एक ऐसा भी मंदिर है जहाँ गणेश जी का मुख मानव मुख के समान है , लेकिन गणेश भगवान की पूजा उनके मूल मुख (हाथी मुख के पूर्व वाले मुख) के रूप में की जाती है। जी यह प्राचीन “स्वर्णवल्ली मुक्तीश्वर मंदिर” तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले Mayavaram – Tiruvarur Road पर Poonthottam के निकट Koothanur से 2.6 कि मी Thilatharpanapuri थिलान्थरपानपुरी में है. भगवान गणेश को यहाँ नर-मुख विनायकर कहा जाता है . ऐसी भी प्रतिमा है जिसमे गणेश जी का मुख मानव मुख के समान है।

कहां है भगवान गणेश का असली मुख - गणेश जी के हर नाम में गज का जिक्र आता है. दरअसल भगवान गणेश का मुख हाथी का है इसलिये उन्हें इन नामों से पुकारा जाता है, यह तो आप भी जानते ही होंगे और आप यह भी जानते हैं कि कैसे उन्हें यह हाथी का मुख लगा है लेकिन उनका असली मुख कहां गया क्या आप जानते हैं. आइए हम आपको बताते है - इसके पीछे 2 पौराणिक कथाए है।

शनि के दृष्टिपात से हुआ श्री गणेश का सिर धड़ से अलग - पौराणिक ग्रंथों में भगवान गणेश के जन्म लेने की जो कहानियां मिलती हैं उनमें से एक के अनुसार जब भगवान गणेश को माता पार्वती ने जन्म दिया तो उनके दर्शन करने के लिये स्वर्गलोक के समस्त देवी-देवता उनके यहां पंहुचे. तमाम देवताओं के साथ शनिदेव भी वहां पंहुचे। हुआ यूँ कि भगवान शनिदेव को उनकी पत्नी ने श्राप दे रखा था कि जिस पर भी उनकी नजर पड़ेगी उसे हानि जरुर पंहुचेगी। इसलिये भगवान शनिदेव भी अपनी दृष्टि टेढ़ी रखते हैं ताकि किसी का अहित न हो। लेकिन माता पार्वती को भगवान शनि का इस तरह देखना अच्छा नहीं लगा और उनसे कहा कि क्या आप हमारे यहां संतानोत्पति से खुश नहीं हैं जो ऐसे नजरें चुरा रहे हैं।

शनिदेव पर काफी दबाव उन्होंने डाला तो शनिदेव को मजबूरन अपनी दृष्टि नवजात शिशु यानि श्री गणेश पर डालनी पड़ी जैसे ही बालक गणेश पर उनकी नजर पड़ी उनका मुख धड़ से अलग हो गया और वह आकाश में स्थित चंद्रमंडल में पंहुच गया, शनिदेव के इस कृत्य से घर में हाहाकार मच गया, माता पार्वती तो बेसुध हो गई। तभी इस स्थिति का समाधान निकल कर आया कि जिस का भी मुख पहले मिले वही लगा दें तो बालक जीवित हो जायेगा. तभी भगवान शिव ने हाथी का मुख भगवान गणेश को लगा दिया. इस प्रकार माना जाता है कि भगवान गणेश का असली मुख आज भी चंद्रमंडल में विद्यमान है।

भगवान शिव को गणेश जी ने रोका तो उनका सर अलग कर दिया - एक अन्य कथा के अनुसार माता पार्वती ने अपने मैल से श्री गणेश की रचना की और उन्हें अपना द्वारपाल नियुक्त कर दिया और आदेश दिया कि जब तक वे स्नान कर रही हैं किसी को भी अंदर न आने दें. माता पार्वती स्नान कर ही रही थी कि वहां भगवान शिव का आना हुआ। भगवान गणेश ने उनका रास्ता रोक लिया और अंदर जाने की अनुमति नहीं दी. भगवान शिव इससे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान गणेश के सर को धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती को पता चला तो वे भी क्रोधित हुई और विलाप करने लगी तब भगवान शिव ने माता पार्वती को मनाने के लिये हाथी का मस्तक लगाकर श्री गणेश को जीवित कर दिया और वरदान दिया कि सभी देवताओं में सबसे पहले गणेश की पूजा की जायेगी. इस कहानी के अनुसार भी उनका शीश धड़ से अलग होकर चंद्र लोक में पंहुच गया।

पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर में है आदि गणेश - एक मान्यता यह भी है कि भगवान गणेश का मस्तक धड़ से अलग करने के बाद जब माता पावर्ती रुष्ट हो गई और अपने पुत्र के जीवित न होने पर प्रलय आने की कही तो सभी देवता सहम गये तब भगवान शिव ने कहा कि जो शीश कट गया है वह दोबारा नहीं लगाया जा सकता तो शिवगण हाथी के बच्चे का मस्तक काट कर ले आये जिसे भगवान शिव ने श्री गणेश के धड़ पर लगाकर उन्हें फिर से जीवित कर दिया. मान्यता है भगवान शिव ने श्री गणेश के धड़ से अलग हुए मुख को एक गुफा में रख दिया. इस गुफा को वर्तमान में पातालभुवनेश्वर गुफा मंदिर के नाम से जाना जाता है यहां मौजूद भगवान गणेश की मूर्ति को आदिगणेश कहा जाता है.

पुत्र कामना और पति की दीर्घ आयु के लिए काफी मान्यता है इस मंदिर की

 

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