जिसकी कृपा से कालिदास ने पाया महाकवि का पद
जिसकी कृपा से कालिदास ने पाया महाकवि का पद
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कहा जाता है कि महाकवि कालिदास पहले काव्य के प्रति इतने गंभीर नहीं थे। मगर बाद में काव्य में उनकी ऐसी रूचि जगी कि विश्व में वे महाकवि हो गए। ऐसा कृपा प्रसाद उन्हें मां काली के आशीर्वाद से ही मिला है। जी हां, उनका नाम ही कालिदास था जिन पर महाकाली की कृपा थी। मध्यप्रदेश के उज्जैन में अतिप्राचीन गढ़कालिका देवी की वे आरधना किया करते थे। यह देवी उनकी आराध्य देवी थीं।

दरअसल प्राचीनकाल में उज्जैन नगर एक टीले और इसके आसपास तक ही सीमित था। इसे गढ़ कहा गया। इस गढ़ पर प्राचीन देवी मंदिर था। यह मंदिर मां कलिका का था। जिसके कारण इसका नाम गढ़ कालीका था।

दरअसल यह नगर इस प्राचीन क्षेत्र तक सीमित था। नगर की रक्षा के लिए चारों ओर परकोटों पर  पर मंदिरों की स्थापना की गई। ये मंदिर भैरव और कालीका  के मंदिर थे। इन मंदिरों में श्री कालीका देवी का मंदिर था। मंदिर  अति प्राचीनकाल से ही श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। दरअसल यहां मांगी गई मन्नत हमेशा पूरी होती है।  

मंदिर में प्राचीन दीप स्तंभ हैं जहां नवरात्रि में दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं। माता की नवरात्रि में विशेष आराधना की जाती है।  शुक्रवार, नवरात्रि और विभिन्न अवसरों पर माता को सौलह श्रृंगार अर्पित किया जाता है। माता की गोद भी भरी जाती है। इनकी स्थापना सम्राट विक्रमादित्य के काल में हुई थी। मां से कोई भी मन्नत मांगने पर वह पूरी जरूर होती है। 

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