स्वर्ण मंदिर से लेकर इंदिरा की मौत तक, जाने ऑपरेशन ब्लू स्टार की पूरी कहानी
स्वर्ण मंदिर से लेकर इंदिरा की मौत तक, जाने ऑपरेशन ब्लू स्टार की पूरी कहानी
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आज देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्मदिन है। देश आज उन्हें नमन कर रहा है। अगर आपातकाल को छोड़ दे तो इंदिरा गांधी के कार्यकाल देश भर के लोगो ने सराहा है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक कार्य किए, जिसमे आॅपरेशन ब्लू स्टार भी एक है। ऑपरेशन ब्लू स्टार को बीते हुए भले ही 32 वर्ष से ज्यादा बीत गए हो, लेकिन इसकी टीस अब भी बरकरार है। 5 जून 1984 की रात को सेना हथियारों से लैस होकर आस्था के सबसे बड़े मंदिर में उसकी रक्षा के लिए पहुंची थी। माना जाता है कि उस रात चरमपंथियों के कब्जे से तो मंदिर को मुक्त करा लिया गया, लेकिन देशवासियों को बड़ा जख्म दे गई।

बंटवारे से पंजाब तो पहले ही बिखर गया था और अब कट्टरपंथ वहां जन्म लेने लगी थी। सिखों के सबसे बड़े तीर्थ स्थल स्वर्ण मंदिर समेत सभी गुरुद्वारों का प्रबंधन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के अधीन आ चुका था और एसजीपीसी की पॉलिटिकल विंग शिरोमणि अकाली दल सिख अस्मिता की राजनीति शुरू कर चुका था। आनंदपुर साहिब में अलग सिख राज्य समेत पंजाब के लिए कई मांगें रखी गईं जो अकाली राजनीति का आधार बन गईं। इसी बीच एक सात साल का बच्चा जरनैल सिंह भिडरावाले ने सिख धर्म की पढ़ाई शुरु कर दी। उसकी कट्टर आस्था ने उसे लोगों का चहेता बना दिया। जब टकसाल के गुरु की मौत हुई, तो उन्होने बेटे की जगह भिंडरावाले को प्रमुख बनाया।

1966 में केंद्र सरकार ने पंजाब को हरियाणा और हिमाचल से अलग करने का फैसला मान लिया, लेकिन राजनीति में मुकाम हासिल करने के लिए अकाली दल ने पंजाब को चंडीगढ़ में मिलाने और पंजाब की नदियों पर से हरियाणा और राजस्थान का हक खत्म करने की मांग की। अब कांग्रेस ने अकाली दल के खात्मे के लिए भिंडरावाले को प्रोमोट करना शुरु किया। 1978 में अमृतसर में निरंकारियों के सम्मेलन के दौरान भिंडरावाले समर्थकों और निरंकारियों के बीच जानलेवा झगड़ा हुआ जिसमें भिंडरावाले के 13 समर्थक मारे गए। इस एक घटना ने भिंडरावाले को हिंसा का लाइसेंस दे दिया। भिंडरावाले पर तीन हाई प्रोफाइल हत्याओं के आरोप लगे लेकिन कांग्रेस के राज में ये आरोप कभी साबित नहीं हो पाए। अब बात ब्लू स्टार ऑपरेशन की।

शाम के 5 बजे अभियान शुरु हो चुका था और सेना का मकसद चरमपंथियों के कब्जे से स्वर्ण मंदिर को छुड़ाना था। सेना के अनुसार, चरमपंथी मंदिर के पास 17 बिल्डिंगो में छुपे हुए थे। इसलिए सबसे पहले सेना ने स्वर्ण मंदिर के पास होटल टैंपल व्यूह और ब्रह्म बूटा अखाड़ा में धावा बोला जहां छिपे चरमपंथियों ने बिना ज्यादा विरोध किए समर्पण कर दिया। रात के 10.30 बजे सेना अंतिम चरण के लिए तैयार थी। कमांडिंग अफसर बरार ने अपने अधिकारियों को उतर की ओर से घुसने का संकेत दिया, लेकिन मिनटों में 20 जवान शहीद हो गए। अब साफ हो गया कि बरार को गलत जानकारी मिली थी। रात के 12.30 बजे बरार ने अपने कुछ अधिकारियों को किसी तरह से पहली मंजिल तक पहुंचने का आदेश दिया। सेना की कोशिश थी किसी भी सूरत में अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की, जो हरमिंदर साहिब के ठीक सामने है। यही भिंडरावाले का ठिकाना था, लेकिन सेना की एक टुकड़ी को छोड़ कर कोई भी मंदिर के भीतर घुसने में कामयाब नहीं हो पाया था।

अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की कोशिश में सेना को एक बार फिर कई जवानों की जान से हाथ धोना पड़ा। सेना की स्ट्रैटजी बिखरने लगी थी। रात के दो बजे तक साफ हो गया कि दहशतगर्द पूरी तैयारी के साथ आए है और वो आत्मसमर्पण करने के मूड में बिल्कुल नहीं है। बरार ने टैंक की मांग की, क्यों कि सुबह से पहले सब निपटाना था। सुबह होते ही और जाने जाती। सुबह 5 बजे तक बरार को सरकार से टैंक के इस्तेमाल की परमिशन मिल गई। लेकिन टैंक इस्तेमाल करने का मतलब था मंदिर की सीढ़ियां तोड़ना। सिखों के सबसे पवित्र मंदिर की कई इमारतों को नुकसान पहुंचाना। 5 बजकर 21 मिनट पर सेना ने टैंक से पहला वार किया। चरमपंथियों ने अंदर से एंटी टैंक मोर्टार दागे। सुबह होते ही उजाला हो गया और तभी एक जोरदार धमाका हुआ।

सेना को लगा भिंडरावाले को बगाने के लिए यह विस्फोट जानबूझकर किया गया। अचानक सुबह के 11 बजे अकाल तख्त के चरमपंथी गेट की ओर बाहर मिकलने लगे, लेकिन सेना ने उन्हें मार गिराया। इसके बाद 200 लोगों ने सरेंडर कर दिया। लेकिन भिंडरावाले का कोई अता-पात नहीं था। तभी भिंडरावाले का एक समर्थक सेना को अकाल तख्त के भीतर ले गया, जहां भिंडरावाले और उसके सहयोगियों की लाश पड़ी थी।

6 तारीख की शाम तक स्वर्ण मंदिर के भीतर छिपे चरमपंथियों को मार गिराया गया था। सिखों की आस्था का केन्द्र अकाल तख्त नेस्तनाबूद हो चुका था। इस ऑपरेशन में आम नागरिक भी मारे गए थे। माना जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत इसी का परिणाम रहा। 31 अक्टूबर 1984 को अपने घर से निकल रहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर उनके दो सिख सुरक्षा गार्डों सतवंत और बेअंत सिंह ने गोलियों की बौछार कर दी। ऑपरेशन ब्लू स्टार से पैदा हुई सांप्रदायिकता और कट्टरपंथ ने प्रधानमंत्री की जान ले ली। प्रधानमंत्री की हत्या के बाद शुरू हुए दंगों ने करीब तीन हजार लोगों की जान ले ली। इनमें से ज्यादातर सिख थे।

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