चिंताजनक! विलुप्त हो रहे गंगाजल को अमृत बनाने वाले मित्र जीवाणु, शोध में हुआ हैरतअंगेज खुलासा
चिंताजनक! विलुप्त हो रहे गंगाजल को अमृत बनाने वाले मित्र जीवाणु, शोध में हुआ हैरतअंगेज खुलासा
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देहरादून: गंगा की सहायक नदियों अलकनंदा एवं भागीरथी की सेहत ठीक नहीं है। पानी को ठीक बनाने वाले मित्र जीवाणु (माइक्रो इनवर्टिब्रेट्स) प्रदूषण की वजह से तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। इस बात का खुलासा भारतीय वन्यजीव संस्थान के एक्सपर्ट्स के शोध से हुआ है। भागीरथी नदी में गोमुख से लेकर देवप्रयाग तक कई जगहों पर या तो मित्र जीवाणु पूर्ण रूप से नदारद हैं या उनका आँकड़ा बेहद कम है। यही हालात अलकनंदा नदी में माणा से लेकर देवप्रयाग तक पाए गए है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, दोनों नदियों में माइक्रो इनवर्टिब्रेट्स का कम पाया जाना इस बात का संकेत है कि यहां पानी की गुणवत्ता फिलहाल ठीक नहीं है। एक्सपर्ट्स की टीम विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रही है।

ऑल वेदर रोड के साथ ही नदियों के किनारे बड़े स्तर पर किए जा रहे विकास कार्यों का मलबा सीधे नदियों में डाला जा रहा है। नदियों के किनारे बसे शहरों के घरों से निकलने वाला गंदा पानी बिना ट्रीटमेंट के नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है। बैट्रियाफोस बैक्टीरिया के कारण बनी रहती है गंगाजल की शुद्धतापूर्व में जलविज्ञानियों द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि गंगाजल में बैट्रियाफोस नामक बैक्टीरिया पाया जाता है जो गंगाजल के भीतर रासायनिक क्रियाओं से पैदा होने वाले अवांछनीय पदार्थ को खाता रहता है।

वही इससे गंगाजल की शुद्धता बनी रहती है। एक्सपर्ट्स की माने तो गंगाजल में गंधक की बहुत ज्यादा मात्रा पाए जाने से भी इसकी शुद्धता बनी रहती है तथा गंगाजल लंबे वक़्त तक खराब नहीं होता है। सिर्फ एक किलोमीटर के बहाव में स्वयं ही गंदगी साफ कर लेती है गंगा वैज्ञानिक अध्ययनों से यह बात भी सामने आई है कि देश की अन्य नदियां 15 से लेकर 20 किलोमीटर के बहाव के बाद स्वयं को साफ कर पाती हैं तथा नदियों में पाई जाने वाली गंदगी नदियों की तलहटी में जमा हो जाता है। किन्तु गंगा सिर्फ एक किलोमीटर के बहाव में स्वयं को साफ कर लेती है। मित्र जीवाणुओं की संख्या कहीं कहीं 15 प्रतिशत से भी कम दोनों नदियों में मित्र जीवाणुओं का अध्ययन ईफेमेरोपटेरा, प्लेकोपटेरा, ट्राइकोपटेरा (ईपीटी) के मानकों पर किया गया। अगर किसी नदी के जल में ईपीटी इंडेक्स बीस प्रतिशत पाया जाता है तो इससे साबित होता है कि जल की गुणवत्ता ठीक है। अगर ईपीटी इंडेक्स तीस प्रतिशत से ज्यादा है तो इसका मतलब पानी की गुणवत्ता बहुत ही अच्छी है। मगर दोनों नदियों में कई जगहों ईपीटी का इंडेक्स 15 प्रतिशत से भी कम पाया गया है जो चिंताजनक पहलू है।

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