कैरोसिन लैंप की रोशनी में पढ़ते थे, बाद में अमेरिका के साथ किया परमाणु समझौता
कैरोसिन लैंप की रोशनी में पढ़ते थे, बाद में अमेरिका के साथ किया परमाणु समझौता
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किसे पता था कि एक अर्थशास्त्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर के पद पर रहा यह व्यक्ति एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। जी हां यही व्यक्ति भारत का भाग्य निर्माता बना। ऐसा समय जब कांग्रेस को प्रधानमंत्री के पद के लिए किसी चेहरे की जरूरत थी तब मनमोहन सिंह संकटमोचक के तौर पर सामने आए और उन्होंने सिंग इज़ किंग की कहावत को सही साबित कर दिया। आज मनमोहन सिंह का जन्मदिन है। इस मौके पर PM नरेंद्र मोदी ने उन्हें शुभकामनाए दी है। मनमोहन सिंह जन्म 26 सितंबर 1932 को हुआ था। 

जनता ने दोबारा दिया को मौका 

2004 के बाद के आम चुनाव में चूपीए सरकार चुनी गई थी। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चुनी गई यूपीए सरकार का यूपीए 1 के तौर पर कार्यकाल अच्छा रहने के बाद जनता ने दोबारा यूपीए को मौका दिया और दूसरी बार भी कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार चुनी गई। मनमोहन सिंह को मौन प्रधानमंत्री के तौर पर जाना जाता है। मगर सबसे बड़ी बात है कि मनमोहन सिंह काम अधिक सटिक तरह से करते हैं। डाॅ. उपाधि पाने के बाद भी वे काफी सरल और सहज स्वभाग के हैं। उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए भी कई बार सादा परिचय ही दिया। 

आर्थिक सुधारों के लिए जाने जाते हैं 

पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह अपने आर्थिक सुधारों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भारती रिज़र्व बैंक को बल दिया तो प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री जैसे पदों पर रहते हुए देश को एक मजबूत तंत्र दिया। वित्तमंत्री के तौर पर उन्होंने आम आदमी का बजट ऐसा प्रस्तुत किया कि गरीब की थाली से कुछ भी नहीं छिना गया और उद्योगपति की पांचों अंगुलिया घी में रहीं। 1976 से 1980 तक वे आरबीआई गवर्नर रहे।

कैरोसिन से उच्च शिक्षा तक का सफर

यह जानकार आपको आश्चर्य होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अंधेरे के दौर में भी अपने लिए उम्मीद तलाश लेते थे। दरअसल वे पढ़ने में बहुत ही होशियार थे। उन्होंने कैरोसिन से जलने वाले लैंप में अपना अध्ययन किया। उन्होंने 12 वर्ष तक गांव में पढ़ाई की इसके बाद वे शहर चले गए। स्कूल जाने के लिए उन्हें मीलों पैदल चलना होता था।

परमाणु करार के लिए जाने जाते हैं

मनमोहन सिंह 18 जुलाई 2006 में भारत और अमेरिका के बीच होने वाले परमाणु समझौते के लिए जाने जाते हैं। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। ये मनमोहन सिंह की बड़ी सफलता मानी जाती है।

महंगाई ने दी मात

प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह महंगाई पर काबू नहीं कर पाए। उस वक्त महंगाई का सबसे बुरा दौर था। देश की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडराने लगे।

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