राजनीति की आग में सुलगते मसले, सिकती स्वार्थ की रोटियां
राजनीति की आग में सुलगते मसले, सिकती स्वार्थ की रोटियां
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देश में इन दिनों राजनीतिक बवाल मच रहा है। देश में बड़े पैमाने पर कई मसलों पर राजनीतिक बवाल मच रहा है। चाहे भारत की राजधानी दिल्ली हो या फिर हिंदूत्व और भाजपा का गढ़ माना जाने वाला महाराष्ट्र| कई क्षेत्रों में राजनीति सुलग रही है। एक ओर जहां दिल्ली में यमुना नदी के किनारे होने वाला वल्र्ड कल्चरल फेस्टिवल नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल द्वारा बाधित किया गया। हालांकि नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल अपनी ओर आने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। मगर इस मामले को राजनीति ने रंग दिया गया।

सरकार से इस मामले में सवाल किए गए तो दूसरी ओर विपक्ष द्वारा तेज की गई राजनीति की आड़ में एक बड़ा सांस्कृतिक कार्यक्रम बाधित करने का प्रयास किया गया। इस मामले में पर्यावरण संरक्षण का हवाल दिया गया लेकिन विश्वस्तर पर सांस्कृतिक आयोजन में पहुंचने वाले लोगों के बीच इस तरह का संदेश जाने दिया गया कि संस्कृतियों का पोषक भारत अब राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं वाला देश अधिक हो गया है। इस आयोजन को लेकर जमकर विरोध हुआ। तो दूसरी ओर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अभी भी देश विरोधी के द्वारा नारेबाजी किए जाने का शोर गूंज रहा है। कन्हैया के माध्यम से अब नेताओं द्वारा वोट बैंक बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

वाम दल पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव प्रचार के लिए कन्हैया को लाने की जुगत में हैं तो दिल्ली के माध्यम से देश के 5 राज्य जहां पर आने वाले समय में चुनाव होने हैं वहां दिल्ली से ही केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। कन्हैया की जुबान से महंगाई की बात और मोदी की मुखालफत सुनने को मिल रही है। आखिर वाम दलों और गैर भाजपाई खेमे ने कन्हैया के तौर पर एक ट्रंप कार्ड चला है। दिल्ली की राजनीति भी गर्म हो रही है और उस गर्म आंच पर सभी की रोटियां सिक रही हैं। यही नहीं महाराष्ट्र में आॅटो के परमिट जारी किए जाने पर विवाद हो गया है।

दरअसल सरकार यहां पर और परमिट जारी करने जा रही है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने इस मसले पर कहा है कि ये परमिट अधिक संख्या में तो गैर मराठियों को दिए जा रहे हैं ऐसे में मराठियों का हित फिर मारा जा रहा है। उन्होंने परमिट दिए जाने पर आॅटो जलाने की बात कही है। जिस पर महाराष्ट्र की राजनीति में भू-चाल मच गया है। मराठी मानुष और गैर मराठी की बात सामने रखकर फिर से राज्य विशेषकर मुंबई में वैमनस्य फैलने की आशंका है। हां, राज्य के मूल निवासियों को रोजगार प्राथमिकता के साथ देने की बात सही लगती है लेकिन इसके लिए हिंसा का रास्ता उचित नहीं लगता है।

आॅटो के परमिट जारी किए जाने के मामले में यह बात आपसी सहमति से तय होना चाहिए कि मूल निवासियों को कितने प्रतिशत परमिट दिया जाए। हालांकि मुंबई के पर्यावरण को सहेजने के लिए वहां ई - रिक्शा के संचालन की बात कोई नहीं करता। इस तरह से राजनीतिक बवाल मच रहे हैं और देश की राजनीति में गहमागहमी हो रही है। ऐसे में राजनीतिक स्वार्थ के चलते जनता को छला जा रहा है। हर कहीं राजनीति की आग से वैमनस्य का धुंआ उठता नज़र आ रहा है जो कि देश के सौहार्द को प्रभावित कर रहा है। 

'लव गडकरी'

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