style="text-align: justify;">आज बॉक्स ऑफिस पर ओम पुरी, सतीश कौशिक, अन्नू कपूर, सीमा बिस्वास, आदिल हुसैन और आमिर बशीर जैसे नामचीन कलाकारों की फिल्म जय हो डेमोक्रेसी रिलीज हो गई. फिल्म का निर्देशन रंजीत कपूर ने किया है. 'जय हो डेमोक्रेसी' एक साधारण फिल्म है. हालांकि राजनीतिक व्यंग्य के तौर पर इसे पेश करने की कोशिश की गई है, लेकिन फिल्म की कहानी अपने आप में उलझ जाती है. यही कारण है कि पटकथा ढीली है. उसमें जबरन सटेरो को घुसाया गया हैं. फिल्म की कहानी - सीमा के आरपार भारत और पाकिस्तान की फौजें तैनात हैं. दोनों देशों के नेताओं की सोच और सरकारी रणनीतियों से अलग सीमा पर तैनात दोनों देशों के फौजियों के बीच तनातनी नहीं दिखती. वे चौकस हैं, लेकिन एक-दूसरे से इतने परिचित हैं कि मजाक भी करते हैं. एक दिन सुबह-सुबह एक फौजी की गफलत से गोलीबारी आरंभ हो जाती है. इस बीच नोमैंस लैंड में एक मुर्गी चली आती है. मुर्गी पकडऩे भारत के रसोइए को जबरन ठेल दिया जाता है. फिर से गोलियां चलती हैं. अचानक यह खबर टीवी पर आ जाती है.
राष्ट्रीय समाचार बन जाता है और सरकार रामलिंगम के नेतृत्व में एक कमेटी गठित कर देती है. ज्यादातर फिल्म इस कमेटी की कार्यवाही पर केंद्रित है. कमेटी को फैसला लेना है कि पाकिस्तान से हुई गोलीबारी का जवाब दिया जाए या नहीं? पता चलता है कि कमेटी के सदस्यों के निजी मामले इस राष्ट्रीय चिंता पर हावी हो जाते हैं. उनके इगो टकराते हैं. मुद्दा भटक जाता है. तूतू मैंमैं आरंभ हो जाती है. उधर सीमा पर नोमैंस लैंड में पाकिस्तनी रसोइया भी आ जाता है. नोमैंस लैंड में भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ के फौजी चीमा सरनेम के है, जो पंजाब के एक ही गांव से जुड़े हैं. उनके बीच भाईचारा कायम होता है, कमेटी के सदस्य किसी फैसले पर पहुंचने के पहले खूब लड़ते-झगड़ते हैं, और यह सब कुछ डेमोक्रेसी के नाम पर हो रहा है. रंजीत कपूर की 'जय हो डेमोक्रेसी' की शुरूआत अच्छी है. ऐसा लगता है कि हम उम्दा सटायर देखेंगे, लेकिन कुछ दृश्यों के बाद फिल्म बिखर जाती है.