छगन को हिंदी बोलने का शौक हुआ,घर से निकला और एक ऑटो वाले से पूछा :- "त्री चक्रीय चालक पूरे सुभाष नगर के परिभ्रमण में कितनी मुद्रायें व्यय होंगी ?"
ऑटो वाला :- "अबे हिंदी में बोल रे.."
छगन :- "श्रीमान मै हिंदी में ही वार्तालाप कर रहा हूँ।"
ऑटो वाला :- "मोदी जी पागल करके ही मानेंगे । चलो बैठो कहाँ चलोगे ?"
छगन :- "परिसदन चलो"
ऑटो वाला फिर चकराया :- "अब ये परिसदन क्या है ?
बगल वाले श्रीमान ने कहा :- "अरे सर्किट हाउस जाएगा"
ऑटो वाले ने सर खुजाया बोला :- "बैठिये प्रभु"
रास्ते में छगन ने पूछा :- "इस नगर में कितने छवि गृह हैं ??"
ऑटो वाले ने कहा :- "छवि गृह मतलब ??"
छगन :- "चलचित्र मंदिर"
ऑटो वाला :- "यहाँ बहुत मंदिर हैं ... राम मंदिर, हनुमान मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, शिव मंदिर"
छगन :- "भाई में तो चलचित्र मंदिर की बात कर रहा हूँ जिसमें नायक तथा नायिका प्रेमालाप करते हैं ..."
ऑटो वाला फिर चकराया :- "ये चलचित्र मंदिर क्या होता है ??"
यही सोचते सोचते उसने सामने वाली गाडी में टक्कर मार दी ऑटो का अगला चक्का टेढ़ा हो गया और हवा निकल गई।
छगन :- "त्री चक्रीय चालक तुम्हारा अग्र चक्र तो वक्र हो गया ..."
ऑटो वाले ने छगन को घूर कर देखा और कहा :- "उतर साले जल्दी उतर !
आगे पंचर की दुकान थी छगन ने दुकान वाले से कहा :- हे त्रिचक्र वाहिनी सुधारक महोदय कृप्या अपने वायु ठूंसक यंत्र से मेरे त्रिचक्र वाहिनी के द्वितीय चक्र में वायु ठूंस दीजिये धन्यबाद।
दूकानदार बोला :- कमीने सुबह से बोनी नहीं हुई और तू श्लोक सुना रहा है।