अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है, सुखीलाल और विनोदिनी दोनों एक मैरिज पार्टी में पहुंचे। दोनों थे तो साथ - साथ मगर दोनों एक दूसरे से अलग थलग और कुछ कटे हुए नज़र आ रहे थे। बात बात पर विनोदिनी का सुखीलाल को टोकना और कई लोगों के सामने उसे नीचा दिखाने की कोशिश करना सुखी को दुखी कर रहा था, यही नहीं दोनों के बीच में विनोदिनी की ही चल रही थी, पार्टी में मुंह पर तो सभी दोनों के जोड़े की तारीफ कर रहे थे लेकिन पीठ पीछे लोग सुखी को विनोदिनी के पीछे - पीेछे चलने वाला पति कह रहे थे। केवल सुखीलाल ही नहीं सुखी के माता पिता हंसमुख और मंजरी भी विनोदिनी से कुछ डरते थे। आखिर ऐसा क्यों, ज़रा सोचिए, सामाजिक अवसरों पर तो विनोदिनी अपने सास - ससुर मंजरी और हंसमुख की सेवा किया करती, उनका ध्यान रखने का जमकर दिखावा करती थी मगर घर पर विनोदिनी उनका ध्यान नहीं रखती, उसका व्यवहार रूखा हो जाता था।
टीवी सीरियल देखने को लेकर वह विवाद करने लगती, अब तो उसने घर में अलग - अलग टेलिविज़न सैट खरीदकर दो सेट टाॅप बाॅक्स कनेक्शन लगवा लिए थे। अब तो हद ही हो गई। विनोदिनी ने अपने पति सुखीलाल, सास मंजरी और ससुर हंसमुख के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की शिकायत कर दी। फिर क्या था, सुखीलाल, मंजरी और ससुर हंसमुख को मुश्किलों का सामना करना पड़ा, मगर सुखीलाल के बचपन का मित्र सतीश एक वकील निकला और उसने उनकी मदद कर उन्हें इस परेशानी से मुक्ति मिली, दरअसल विनोदिनी से न तो सुखीलाल ने और न ही मंजरी ने दहेज की मांग की थी, बल्कि विनोदिनी को उसके एक बाॅय फ्रेंड से मिलने के लिए मना कर दिया गया। जिसके बाद उसने पूरे परिवार पर इस तरह का दबाव बनाया। इसके बाद तो परिवार में कोई भी विनोदिनी को कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं करता था, हाल ही में विनोदिनी ने एक सोशल गेदरिंग में मिली सहेली वृंदा को भी ऐसी ही सलाह दी उसकी सलाह पर वृंदा ने भी ऐसा ही किया और फिर क्या वहां भी वृंदा बेरोकटोक अपनी मनमर्जी करने लगी।
इन दिनों सामाजिकता का ताना बाना कुछ इस तरह बदल गया है। 21 वीं सदी में नारीवाद और महिला सशक्तिकरण की बात की जा रही है। मगर अब महिलावाद समाज पर नकारात्मक असर डाल रहा है। हालात ये हैं कि जिस नारी को रिश्तों की धुरी कहा जाता था उसी नारी की हरकतों से अब रिश्तें बिखर रहे हैं, पिछले कुछ वर्षों में समाज में विघटन तेजी से बढ़ा है। इसका कारण है नारी का अति आत्मविश्वासी होना और नारी का अतिमहत्वाकांक्षी होना। पर्याप्त समानता, स्वतंत्रता मिलने के बाद भी नारी खुद को उपेक्षित महसूस कर रही है। ऐसे में परिणाम विपरीत हो चुके हैं। हालात ये हैं कि अब नारी दुनिया को अपनी मुट्ठी में कैद रखना चाहती है, हालांकि आज भी कई स्थानों पर नारी उपेक्षित है मगर इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यहां नारी को समानता का दर्जा नहीं मिल रहा है मगर इसके विपरीत आरक्षण की ही तरह नारीवाद का लाभ क्रिमीलेयर को ही मिल रहा है। पंचायतों को सरपंच प्रतिनिधि और सरपंच पति घेर कर बैठे हैं, तो नगर निगम में भी पार्षद पतियों का बोलबाला नज़र आता है, लेकिन आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में पढ़ी लिखी और नौकरीपेशा होने का दर्जा हासिल करने वाली नारी जरूर स्वतंत्र हो गई है।
नारी की स्वतंत्रता गलत बात नहीं है लेकिन यदि यही स्वतंत्रता कहीं अधिक हो जाए तो नारी अपने सामने सभी रिश्तों को तिनके की तरह समझने लगती है। फिर वह किसी भी पैमाने को नहीं मानती। परिवारों के टूटने, विवाह संबंधों का विच्छेद होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि समानता, स्वतंत्रता और हर अधिकार मिलने के बाद भी नारी अपने अधिकारों का गलत प्रयोग करती है। अब नारी की प्रोफेशनल लाईफ भी अलग हो चली है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण काॅल सेंटर्स और चकाचौंध व ग्लैमर से भरपूर प्रोफेशनल में कथिततौर पर नारी द्वारा खुद का उपभोग करवाना है, सामाजिक अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि कई ऐसे प्रोफेशन हैं जहां नारी अपने उपभोग को गलत नहीं मानती, इसके ऐवज में उसे पुरूषों की तुलना में अधिक ग्रोथ और पारिश्रमिक मिलता है। मगर नारी इन बातों को समाज के दायरे से दूर रखती है। ऐसी नारियां पारिश्रमिक और स्टेटस के नाम पर परिवार के सदस्यों को कमतर साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। नतीजतन समाज पर इसका नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है।
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