एक पिता की सोच - पिता का कर्तव्य संतान को केवल जन्म देने से पूर्ण नहीं होता
एक पिता की सोच - पिता का कर्तव्य संतान को केवल जन्म देने से पूर्ण नहीं होता
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पिता तो वो है जो जीवन ही नहीं देते, साथ ही साथ जीवन-मूल्य भी देते हैं.इस संसार सागर में जीव को लाने वाले पिता देवताओं, ऋषियों और देवतीर्थों से भी अधिक पूजनीय और वंदनीय होते  हैं.आज हर व्यक्ति के पास जो भी पद ,पैसा ,वैभव, यश, मान और प्रतिष्ठा है.उसमें पूज्य पिता की साधना, यश, तप , त्याग और शुभकामनाओं की ही खुशबू यत्र-तत्र-सर्वत्र समाई हुई है.

पिता ने ही कठोर परिश्रम से अपनी संतान को उचाईयों तक पहुंचाया है .हर एक बच्चे के ऊपर पिता का साया बरगद की घनी छांव के समान होता है,बच्चो की खुशियों के लिए पिता अपने जीवन में कितना परिश्रम करता है ,पिता अपने बच्चे को ऐसे संस्कार देता है, जिससे वह इस संसार में सम्मान और इज्जत के साथ जी सके . पिता की छाया से ही बच्चे को कोई आंच नहीं आती और वह सरलता के साथ आगे बढ़ता जाता है .

पिता ही बच्चे को उंगली पकड़ इस संसार में चलना और जीना सिखाता है .पिता तो प्रेम, श्रद्धा और आस्था के सिवाय अपनों से कुछ भी नहीं चाहते बदले में उन्हें वह देना चाहते हैं, जो कभी भी न समाप्त होने वाला हो पिता बच्चों की रक्षा और कल्याण के लिए हर क्षण, हर पल, हर देश और दिशा में तत्पर रहते हैं. दु:ख और संकट के क्षणों में पिता के प्रति भावपूर्ण एक आह्वान और पुकार उन्हें अपनी ओर बरबस ऐसे खींच लाती है, जैसे दु:ख-दारुण में फंसे भक्त की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़कर भगवान दौड़े चले आते हैं.

इस संसार में आये प्रत्येक मानव प्राणी को हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए की उनके माता-पिता कभी दुखी न हों वे हमारे लिए जाने कितने जप ,तप, परिश्रम करते है हमारे उज्जवल भविष्य के लिए हमेशा आगे आते है .और हमें सही दिशा प्रदान करते है . उनके पास जितना धन दौलत , शक्ति होती है उसके अनुसार अपने बच्चे को प्रगति की राह तक पहुंचाते है . 
हर व्यक्ति के माँ -बाप उसके भगवान होते है .

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