नई दिल्ली: हरियाणा-पंजाब सीमा पर स्थित शंभु बॉर्डर एक बार फिर किसान आंदोलन का केंद्र बन गया है। 101 किसानों का जत्था आज दोपहर 12 बजे दिल्ली कूच करने की तैयारी में है। इस मौके पर पहलवान और कांग्रेस नेता बजरंग पुनिया भी किसानों के समर्थन में शंभु बॉर्डर पहुंचे। किसानों ने प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी 12 मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने की बात कही।
बजरंग पुनिया ने "वन नेशन, वन इलेक्शन" के संदर्भ में कहा कि अगर यह लागू हो सकता है, तो देश में "वन नेशन, वन एमएसपी" भी लागू होना चाहिए। उन्होंने किसानों को उनके अधिकारों से वंचित रखने के लिए सरकार की आलोचना की और कहा, "किसानों को उनके अधिकारों के बदले आंसू गैस, लाठी-डंडे और जहरीली गैस दी जा रही है।" पुनिया ने किसानों से एकजुट होकर आंदोलन को मजबूत बनाने की अपील की और किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की तारीफ करते हुए कहा कि वे निस्वार्थ भाव से किसानों की लड़ाई लड़ रहे हैं।
गौरतलब है कि जब दिल्ली में पहलवान विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया प्रदर्शन कर रहे थे, तब किसान नेता राकेश टिकैत ने उनसे मुलाकात कर समर्थन जताया था। अब बजरंग पुनिया किसानों के साथ खड़े हैं। पहलवानों के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह समर्थन आंदोलन को कितना प्रभावित करता है।
किसानों की 12 प्रमुख मांगों में हर फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी और किसान-मजदूरों की पूर्ण कर्जमाफी शामिल है। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार को बातचीत करने के लिए कहा गया है और बल प्रयोग से बचने की नसीहत दी गई है। वहीं, उन्होंने अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की बिगड़ती हालत को लेकर चिंता जताई। 26 नवंबर से अनशन पर बैठे डल्लेवाल का यह 19वां दिन है।
इसके अलावा किसानो नेताओं ने सांसद रामचंद्र जांगड़ा के किसानों को "पंजाब के नशेड़ी" कहने वाले बयान की निंदा की और उनसे माफी की मांग की। साथ ही, भारतीय जनता पार्टी (BJP) से उन्हें पार्टी से निकालने की भी अपील की। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार किसानों की सभी 12 मांगें मानती है या बातचीत के जरिए कुछ मुद्दों पर समझौता करती है। आंदोलन को किसान संगठनों के अलावा अब कांग्रेस और बजरंग पुनिया जैसे नेताओं का समर्थन मिलना इसे और व्यापक बना रहा है। यह सवाल बना हुआ है कि क्या इस संघर्ष से किसानों को वह गारंटी मिलेगी, जिसकी वे लंबे समय से मांग कर रहे हैं, या यह आंदोलन भी सिर्फ एक और प्रयास बनकर रह जाएगा?
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