खुशियों से शुरू होता है परिवार का सफर....लेकिन अंत होता है कुछ इस कदर
खुशियों से शुरू होता है परिवार का सफर....लेकिन अंत होता है कुछ इस कदर
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परिवार ये शब्द सुनने में जितना अच्छा लगता है, असल में ये शब्द उतना ही एहमियत भी रखता है। कई बार लोग ये कहते है कि आखिर परिवार क्या होता है...और ये परिवार चलाता कैसे है....? तो उन लोगों को इस बारें में जरूर जानना चाहिए, कि परिवार की कोई सीमित संख्या नही होती...। परिवार कैसा भी हो सकता है, एक परिवार में 10 व्यक्ति भी होते है तो... कभी कही ये परिवार 2 लोगों में ही सिमट कर रह जाता है। आज हम आपके लिए परिवार और इसकी महत्व के बारें में आप सभी को बताएंगे। तो चलिए जानते है कि क्या होता है परिवार.....

छोटी - छोटी बातों में भी जो खुश हों जाए। 
हर गम को मुस्कुराकर वह पी जाए।
आंसू न छलके किसी की भी आंख के, परिवार हर मुसीबत में ढाल बन जाए।।।

क्या होता है परिवार: परिवार को आसान शब्दों में समझा जाए तो यह एक चलती हुई गाड़ी की तरह है। जिसमे कई तरह के मोड़, गड्ढे, नदी, नाले, समुद्र और झरने जैसी कई चीजें होती है। लेकिन इन चीजों से लड़ने यानी की कठिनाइयों का सामना करने लिए जो ताकत परिवार में होती है वो शक्ति दुनिया की किसी भी चीज में नहीं होती।। उदाहरण के तौर पर महामारी के इस दौर में जो अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की सेवा ने लगा हुआ है वो होता है परिवार। जिसमे जात -पात, ऊंच नीच का कोई भेद नहीं होता, हर परेशानी का डट कर सामना करें वो होता है परिवार।

परिवार की गाड़ी के दो पहिए होते है पति पत्नी: जी हां आपको यह तो पता चल गया कि क्या होता है परिवार, अब जानते है कि इस परिवार की गाड़ी के पहिए पति पत्नी को क्यों बोला जाता है... पति और पत्नी परिवार के वो बीज है जो एक पौधे को जन्म देने का काम करते है, हर सुख दुख में एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर परेशानियों का सामना करते है, और अपने संसार को आगे बढ़ाते है। पति या पत्नी के बीच किसी भी बात को लेकर अनबन हो भी जाती तब भी वह अपने परिवार को संभाल लेते है। किसी को कानों कान खबर भी नहीं होने देते की उनकी आपस में अनबन चल रहीं है। कभी इस गाड़ी का एक भी पहिए कमजोर पड़ता है तो दूसरा उसका भार भी अपने ऊपर ले लेता है। परंतु जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो और तभी इस गाड़ी के पहियों के बीच मानों जैसी कोई कील, कांच का टुकड़ा, या और भी अन्य चीजें जो गाड़ी के सफर में रास्ते का रोड़ा बन जाए। तब होने लगती है परेशानी, बड़े से बड़ा विश्वास भी चकनाचूर हो जाता है। दरअसल कहने का तात्पर्य यह है कि यदि पति पत्नी के बीच कोई तीसरा आ जाए जैसे पति का किसी अन्य महिला, लड़की के साथ प्रेम प्रसंग शुरू हो जाए। या फिर पत्नी के दिल को कोई और पसंद आ जाए। वहीं से शुरू हो जाती है परिवार की इस गाड़ी के पहियों में समस्या। जिसको कई बार संभालने के बाद भी यह रिश्ता नहीं संभलता।

बच्चे होते है परिवार की रौनक: बच्चे परिवार का वो हिस्सा होते है, जो बीज से निकलकर एक छोटे से पौधे के रूप में जन्म लेते है. बच्चों के जन्म लेने से हर परिवार की खुशियां दुगनी हो जाती है. इतना ही नहीं माता पिता बच्चों की परवरिश से लेकर उन्हें बड़ा करने तक उनकी सारी जिम्मेदारियां उठाते है. बच्चा जब भी रोता है.... तब -तब माता अपने सारे काम छोड़कर उसको चुप करवाने के लिए चली आती है, बच्चा जब भी किसी वस्तु के लिए जिद करता है.....पिता उसकी हर जिद के लिए दिन रात एक कर देता है, क्यूंकि उस मासूम को तो पता ही नहीं होता है कि मेरे पिता अमीर है या गरीब, पिता का बिज़नेस है या वो किसी के पास मजदूरी करते है... उस बच्चे को तो सिर्फ अपनी जिद पूरी करवानी होती है. बच्चे की मासूमियत के आगे घर के सारे गम फीके से लगने लग जाते है. लेकिन वही बच्चा जब बीमार हो जाता है तो मानों जैसे माँ बाप का तो दिन का चैन और रातों की नींद उड़ जाती हो. माता पिता बस एक ही आस में अपना सारा जीवन उस बच्चे की परवरिश में लगा देते है, और यही सोचते है कि हमारा बच्चा बढ़ा होकर हमारे परिवार का नाम रोशन करेगा, हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा. लेकिन उन माँ-बाप को क्या पता होता है कि जिसे वह लंदन, अमेरिका, USA जैसी कई बड़ी कंट्री में पढ़ने के लिए भेजते है.... जब वो ही बच्चा बड़ा हो कर पढ़ लिख लेता है...और बड़ा व्यक्ति बन जाता है तब उसे अपने माँ बाप की फ़िक्र नहीं होती, वो तो बस अपनी अय्याशी..नशे... पार्टी पब आदि में अपना सारा पैसा उजाड़ने लग जाता है, क्यों वह सिर्फ यही सोचता है कि उसके लिए उसके माँ-बाप ने उसके लिए इतना तो कर ही दिया है कि उसका सारा जीवन आराम से निकल जाएगा. लेकिन वह यह बात किऐसे भूल जाता है कि उसका तो जीवन निकल जाएगा लेकिन उसकी आने वाली पीढ़ी का क्या होगा वह इस बारें में खुद भी नहीं जानता है.  इसी तरह से समय बीतता चला जाता है, और वो दिन भी आ जाता है....जब माँ बाप बूढ़े और बेसहारा हो जाते है. ये समय का वो पड़ाव होता है जब हर माता-पिता को लगता है कि उनका बच्चा अब उनकी देखभाल करेगा, उनके गुस्से को समझेगा, उनके जीने का सहारा बनेगा, उनकी तबियत बिगड़ने पर रातों को जागेगा, जिस तरह से वे उसे लिए जागते थे...लेकिन उन्हें क्या पता कि जैसे वो सोच रहे है असल में वैसा कुछ भी नहीं होने वाला है. न तो उनके बच्चे उनकी देखभाल करेंगे.... और न उनका ख्याल रखेंगे. लेकिन ये सब तो केवल सपने में ही अच्छा लगता है....यदि ऐसा हकीकत में हो जाए तो हर एक माँ-बाप का बुढ़ापा सवर जाता है.

जब बच्चो की हो जाती है शादी तो इस तरह बदलता है व्यवहार: हर माता पिता का एक ही सपना होता है कि जब भी हमारे बच्चे की शादी हो तो अच्छे खानदान में हो पढ़ी लिखी बहू आए जो हमारे बच्चे के साथ घर परिवार को भी समझे उसके हर उतार चाढ़ाव में साथ खड़े रहे है. मुसीबत में सबके साथ कंधे से कंधा मिलकर आगे बढ़े. लेकिन उनके जब यदि संजोय हुए सपने टूट जाते है तब उन्हें... ऐसा प्रतीत होता है मानों जैसे दुनिया ही खत्म हो गई है. क्यों जब बच्चा ही अपने माता पिता का ध्यान रखना बंद कर देता है और उनकी हर छोटी से छोटी बात पर गुस्सा करने लग जाता है तब उन्हें यह एहसास होता है कि जिसे हमने इतने सालों तक अपनी आँखों का तारा समझा उसने तो हमारे सारे अरमान ही ठंडे कर दिए. 

छोटी- छोटी बातों पर होता है परिवार में कलेश: परिवार में यदि सब कुछ अच्छा हो लेकिन, परिवार में रहने वाले सदस्यों के बीच यदि छोटी छोटी बातों को लेकर अनबन होना शुरू हो जाए तो परिवार उसी दिन से टूटना शुरू हो जाता है.... जरुरी नहीं  घर में कलेश का कारण बड़ा ही हो, कई बार बच्चों बच्चों की लड़ाई में बड़े भी नादनीयत कर बैठते है, और गुस्से में आ कर ऐसा कदम उठा लेते है जिसके प्रभाव से पूरा परिवार हिल जाता है. यदि थोड़ी सी समझदारी दिखाते हुए बातों को समझाया जाए और उस गलती को ठीक करने का प्रयास किया जाए तो शायद घर में अशांति के स्थान शांति का ज्यादा प्रभाव देखने के लिए मिलेगा. कुछ केस ऐसे भी होते है, जिसमे जब माँ- बाप अपने बच्चे का विवाह करवा देते है, घर आई बहू से बेटी की तरह व्यवहार करते है, लेकिन वह उन्हें जरा सा भी अपने माता पिता की तरह नहीं मानती और हर बात पर उन्हें पलटकर जवाब देना....उनकी बेज्जती करना...उन्हें भला बुरा कहना.... अपने घर वालों के सामने ससुराल वालों को नीचे दिखाना भी परिवार में कलेश का कारण बन जाता है. इतना ही नहीं ये आग इस कदर बढ़ती है की एक साथ कई परिवार अपनी चपेट में ले लेती है, और इसका अंजाम केवल एक होता है...बर्बादी. 

जब होता है परिवार में बटवारा तब बट जाते है माँ-बाप: एक बात ध्यान देने वाली जरूर है कि जब भी किसी भी परिवार में कहानी झगड़े से शुरू होकर बटवारें पर आ जाती है अब घर के बटवारें के साथ साथ घर की कई चीजों का भी बटबार हो जाता है, घर की खुशियां, बूढ़े माँ-बाप का सपना सब कुछ.... इस बटबारे में बाँट दिए जाते है. कई बार तो बच्चे अपने माँ- बाप का भी बटवारा कर देते है, उदाहरण के तौर पर- यदि घर में 4 बच्चे हो तो साल के माह के अनुसार माता पिता का बटवारा भी हो जाता है, जिसमे ये कहा जाता है कि साल की शुरुआत के 3 माह माँ-बाप किसी के पास तो उसके बाद किसी और बच्चे के पास तो कई बार माँ और बाप को अलग अलग बच्चों के घर में अपना जीवन बिताना पड़ता है. लेकिन इस बटवारे में बच्चे ये जरूर भूल जाते है कि उनके घर की असली खुशियां तो मायूसी में बदलती जा रही है. माता पिता का दुःख उन्हें अपने स्वार्थ के आगे नहीं दिखाई देता, वो तो बस यही चाहते है कि उन्हें तो बटवारा चाहिए.

अपनों की मुसीबत में करें मदद: परिवार को परिवार इसलिए भी कहा जाता है कि उस परिवार का हर एक मेंबर हर मुसीबत में साथ खड़ा रखता है, फिर वह चाहे किसी भी तरह की मुसीबत ही क्यों न हो... एक अच्छे सदस्य की पहचान भी उसके गुणों और कर्मों से की जाती है. यदि घर का बेटा अपने माता-पिता को ही परेशानी में छोड़ किनारा काट लेता है तो उन बेचारे माँ बाप के दिल पर क्या बीतती होगी. और इसी वजह से कई बार माँ बाप अपनी संतान को अलग करने पर भी मजबूर हो जाते है. सोचिए जरा.... कभी आपका कोई भी परिवार का सदस्य अचानक से बीमार पड़ जाता है... या उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है....या फिर खुद के बिज़नेस में दिवालिया हो जाता है..तो आप ऐसे में क्या करेंगे. उनका साथ छोड़ देंगे, या उनकी मुसीबत की घड़ी में उनका हमदर्द बनकर उन्हें परेशानी से बाहर लाने के बारें में सोचेंगे. लेकिन आज भी भारत में कई परिवार ऐसे है जो अपने घर के सदस्यों से केवल किसी न किसी मतलब से जुड़े हुए होते है. जी हां किसी को बाप- दादा की जमीन चाहिए होती है, तो किसी को बिज़नेस, तो कभी कोई केवल अपने घर वालों से पैसों के लिए ही जुड़ा होता है, जब तक माँ बाप उनकी हर तरह से सहायता करते है तब तक वह उनके साथ रहते है. नहीं तो कौन अपना होता है यही कहते है.

नहीं संभलता माँ-बाप का बोझ तो उठा लेते है ये कदम: बचपन से बड़े होने तक माता पिता अपने बच्चे की हर एक ख्वाहिश का बखूबी ध्यान रखते है, उनकी हर जिद को पूरा करते है, और आखिर करे भी क्यों न आखिर बच्चे होते तो परिवार की ही रौनक है, पर जब वही बच्चे बड़े हो जाते है, और उनके ऊपर माता पिता को संभालने की जिम्मेदारी आने लग जाती है तो वही बच्चे अपने ही परिवार से किनारा काटना शुरू कर देते है.... माँ बाप की बढ़ती आयु और पास आता उनका बुढ़ापा बच्चो को मानों जैसे बोझ लगने लग जाता है, उनकी बिगड़ती तबियत से भी बच्चे परेशान हो जाते है. और बार बार उन्हें एक ही ताने मारते है... अरे चैन से जीने दो...कब तक हम तुम्हारा बोझ उठाते रहेंगे.... मर क्यों नहीं जाते.... कही चले क्यों नहीं जाते... जीना हराम हो गया है.... दिनभर ऑफिस और घर के काम करों और बाद में इनका बोझ उठाओं. इतना कुछ सुनने के बाद मानों जैसे माँ बाप की तो जान हाथ पर आ जाती होगी... फिर भी वह अपने बच्चे को उतना ही प्यार करते है जितना बचपन में किया करते थे. लेकिन फिर भी बच्चों से जब माँ बाप का बोझ नहीं उठाया जाता है तो उन्हें एक ही रास्ता नज़र आता है, जानते है क्या....? वृद्धा आश्रम... जी हां एक ऐसी जगह जहां हर बच्चा अपने माँ बाप के बोझ से बचने के लिए उन्हें छोड़ जाता है... और फिर कभी पलट कर उन्हें नहीं देखता. कई बार तो इसी आस में माता पिता की जिंदगी का अंत हो जाता है कि उनका बच्चा उनसे मिलने एक बार तो जरूर आएगा. लेकिन ऐसा होता कहा है. 

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