धर्म के स्नेक सेंटर पर डिमांडेड नाश्ता परोस रहे बाबा
धर्म के स्नेक सेंटर पर डिमांडेड नाश्ता परोस रहे बाबा
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अर्चित बहुत परेशान था वह एक एडर्वटाईजिंग कंपनी में काम करता था पिछले कई दिनों से उसे काम भी अधिक करना पड़ रहा था और फिर उसका बाॅस उस पर खुश नहीं था। अब उसे कुछ रास्ता नहीं सूझ रहा था ऐसे में उसे बाबा तेजस्वी का पता लगा। बाबा की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक थी। कई महिलाऐं बाबा के पास दूर - दूर से आती थीं तो रोते हुए अपना दुखड़ा सुनाती लेकिन बाबा मुट्ठी बंद कर उन्हें अपनी कृपा देते थे। ऐसा उपाय बताते कि उनकी परेशानी दूर हो ही जाती। ऐसे में अर्चित भी वहां पहुंच गया। किसी के घर में एंटर करने पर भी अपने शूज़ उतारकर न रखने वाला अर्चित आज बाबा के दरबार में दूर ही शूज़ उतारकर कतार में बैठा था और अपनी बारी आने पर अपनी व्यथा ऐसे सुनाने लगा जैसे वह बाबा को ही अपना सब मानता हो। 

ईला वर्षों से संतान न होने के कारण परेशान थी। संतान को लेकर उसकी सास,ससुर और अन्य दूसरे लोग उससे अक्सर बातें किया करते थे और बात बात में पोते की कामना की बात भी कर दिया करते थे। उसे भी कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। सारी मेडिकल टेस्ट करवा ली। दवाईयों का सेवन कर लिया लेकिन उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। आखिर वह करे तो क्या करे। फिर उसे एक गोगा माता के बारे में पता चली। गोगा माता केसरिया रंग के परिधान पहनती थी। ईला ने गोगा माता से आशीर्वाद लिया और फिर उन्होंने उसे रोज़ उनके चित्र के सामने आम का भोग लगाकर उसका सेवन करने को कहा. बस फिर क्या था उसने ऐसा प्रयोग प्रारंभ कर दिया। 

भई ये तो हुई काल्पनिक किस्सों वाली बात मगर ये काल्पनिक घटनाक्रम हमारे जीवन के ईर्द - गिर्द घूमते हैं इन घटनाक्रमों के दूसरी ओर ऐसे ही उदाहरण हमारे जीवन में कई बार देखने को मिलते हैं। आखिर इन उदाहरणों ने हमारे धर्म को भौतिकवादी बना दिया है। अब हिंदू धर्म का मतलब ही कुछ और हो गया है। अब तो केवल मांग और उसकी पूर्ति तक ही हमारा धर्म सीमित हो गया है।

इन दिनों ऐसे चमत्कारिक बाबा बहुत बड़े पैमाने पर हो गए हैं जो तुरंत समस्या का समाधान कर देते हैं और लोगों को लालच का लड्डू दे देते हैं। ऐसे बाबाओं से घिरे हमारे इस धर्म संसार में आडंबर अधिक हो गया है। ऐसे में वास्तविक संतों को हमारे जीवन में प्रादुर्भाव बहुत ही कम हो पाता है। उनसे हम संपर्क नहीं कर पाते और ऐसे लालच में आ जाते हैं जो हमें लालच देते हैं।

अब किसी स्नेक सेंटर की तरह ये बाबा हमारी डिमांड्स को हमारे सामने परोसने लगे हैं। अब तो इनके यहां जाने के लिए भी अमीर को सबसे पहले अवसर मिलता है। गरीब तो किसी प्रवचन पांडाल में लगे एलईडी से इनके दर्शन पाकर खुद को इतना धन्य समझता है जैसे देवलोक से साक्षात् विष्णु उसके सामने उतर आए हों। ये बाबा अपनी दुकानदारी जमकर चलाते हैं। प्रवचन तो ठीक बात है मगर अपने दर्शन के लिए पहले रजिस्ट्रेशन करवाने और फिर शेंपू आदि बेचने के तौर पर परिवर्तित हो जाती है।

कुछ बाबा तो महिलाओं को दीक्षा देने के नाम पर सेक्स का मंत्र तक देने लगे हैं। अब गुरू अपनी सेविकाओं और सेवादारों के जरिए कहीं से कुछ भी करवा रहे हैं। केसरिए रंग ओढ़कर सबकुछ त्यागने की भावना अपनाने वाले अब सोने से लदे हैं लेकिन आखिर उनका यह सोना किस काम का। न तो वे इसे अपने भक्तों को दे सकते हैं और न ही इस सोने को खर्च कर सकते हैं। फिर भी इनके चरणों में लोग माथा टेक रहे हैं जैसे ये भक्तिभाव के अलावा कुछ न चाहने वाले भगवान को सोने का लालच देकर वे अपने अनुयायियों की सहायता कर देंगे। 

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