फ़ागुन बन कर आ जाओ
फ़ागुन बन कर आ जाओ
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ोल रहा था कल वो मुझसे हाथ में मेरा हाथ लिए।
चलते रहेंगे सुख-दुख के हम सारे मौसम साथ लिए।
उसने अपनी झोली से कल प्यार के हमको फूल दिए।
लौट आए हैं दामन भर के उसकी ये सौग़ात लिए।
रंग डालो तन मन की बगिया, फ़ागुन बन कर आ जाओ।
बरस पड़ो दिल के आँगन में रंगों की बरसात लिए।
हमने अपनी सारी शामें लिख दीं उनके नाम ‘क़तील’।
उम्र का लमहा-लमहा बीता उनको अपने साथ लिए।

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