मरते समय 'लौहपुरुष' के बैंक खाते में थे सिर्फ 260 रुपए, इस वजह से मिली थी सरदार की उपाधि
मरते समय 'लौहपुरुष' के बैंक खाते में थे सिर्फ 260 रुपए, इस वजह से मिली थी सरदार की उपाधि
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'लौहपुरुष' कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल का निधन आज ही के दिन हुआ था। वह भारत के पहले गृहमंत्री थे। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक अत्‍यंत गौरवपूर्ण स्थान अपने नाम किया है। वैसे हम आपको यह भी बता दें कि सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ। वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे। साल 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी और उनकी शादी झबेरबा से हुई थी। जब वह 33 साल के थे तब उनकी पत्नी का निधन हो गया।

वैसे कहा जाता है सरदार पटेल अन्याय नहीं सहन कर पाते थे। वह हमेशा अन्याय का विरोध करते थे। उन्होंने बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया था और इस सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने ही उन्हें 'सरदार' की उपाधि दी थी। कहा जाता है सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे। वह गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से भी काफी प्रभावित हुए थे। साल 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में जब सूखा पड़ गया था तब किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार नहीं मानी। उस दौरान गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया, पर वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे इसलिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके।

उस दौरान उन्हें मिले सरदार पटेल जिन्होंने अपनी स्वेच्छा से इस संघर्ष का नेतृत्व किया। वैसे सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते लेकिन वह महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पद से पीछे हट गए और नेहरूजी देश के पहले प्रधानमंत्री बने। उस दौरान देश की स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री बने। उन्हें साल 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से उन्‍हें नवाजा गया और यह अवॉर्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया। कभी उनके पास खुद का मकान भी नहीं था बल्कि वह अहमदाबाद में किराए एक मकान में रहते थे। कहा जाता है 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे। आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन।

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