रविंद्रनाथ टैगोर जयंती: वर्तमान भारत को 'गुरुदेव' की जरुरत
रविंद्रनाथ टैगोर जयंती: वर्तमान भारत को 'गुरुदेव' की जरुरत
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रविन्द्रनाथ टैगोर आधुनिक युग के एक महान् दार्शनिक एवं शिक्षाशास्त्री थे, उन्होंने मौलिक एवं नये विचारों के द्वारा भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.  अपनी भारतीय संस्कृति के आधार पर ये केवल भारतीय शिक्षा की नींव ही नहीं डाली वरन् पाश्चात्य शिक्षा में भी पूर्व एवं पश्चिम के आदर्शों को नये रूप में स्थापित किया.  इनके इन्हीं महान् कार्यों के कारण ‘गरूदेव‘ की उपाधि से सम्मानित किया गया था.

टैगोर ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रकृति को विशेष महत्व दिया है,  इनका कहना था कि बालक को पुस्तक के स्थान पर जहाॅं तक संभव हो सकें, प्रत्यक्ष स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर प्रदान किए जाने चाहिए. अध्ययन अध्यापन के लिये ये स्वतंत्र एवं प्राकृतिक वातावरण को उपयुक्त एवं श्रेष्ठ समझते थे इसीलिए उन्होंने 1901 में बोलपुर नामक स्थान पर ‘शांति निकेतन‘ नाम से एक विद्यालय की स्थापना की जो आज ‘विश्वभारती‘ विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध है.

वर्तमान में जब विद्यार्थियों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति, शिक्षकों की कर्तव्यहीनता एवं शिक्षा की उद्देश्यहीनता हमारे चिंता का विषय है,  वर्तमान समाज की शिक्षा व्यवस्था को एक अच्छे मार्ग दिखाने की आवश्यकता है जो मानव का चहुॅंमुखी विकास कर सकें.  इस संदर्भ में रविन्द्रनाथ टैगोर जी शिक्षा के प्रणेता तथा उनके क्रांतिकारी विचार विश्व के लिये एक प्रेरणा के स्रोत है,  टैगोर ने मानव जीवन के सभी पहलुओं का अध्ययन किया एवं इन्होंने मनुष्य को सर्वोच्च स्थान दिया.  ये मनुष्य को ईश्वर का रूप मानते थे , अतः वर्तमान संदर्भ में टैगोर के दार्शनिक चिंतन एवं शिक्षा का मनुष्य एवं प्रकृति के साथ अटूट संबंध को समझने की आवश्यकता है.   

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