राफेल लड़ाकू विमान का पूरा ज्ञान, जिस पर मचा है सियासी घमासान
राफेल लड़ाकू विमान का पूरा ज्ञान, जिस पर मचा है सियासी घमासान
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नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव के पास आते ही राफेल सौदे का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। जबकि देश की सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांस के साथ हुए 36 राफेल लड़ाकू विमान समझौते पर मोदी सरकार को क्लीन चिट दे चुकी है। अगर सब कुछ सही चला तो जल्द ही हमारी वायु सेना के बेड़े में ये लड़ाकू विमान शामिल हो जाएंगे। ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि, यह पूरा समझौता क्या है और इससे हमारी  ताकत कितनी बढ़ेगी?

सितंबर 2016 में मोदी सरकार ने फ्रांस से 7।87 अरब यूरो (लगभग 58 हजार करोड़ रुपये) में 36 राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदने के लिए डील की है। सरकार ने दावा किया है कि, इस डील के तहत फ्रांस द्वारा मांगी जाने वाली मूल कीमत में 32।8 करोड़ यूरो की बचत की गई है। 15 प्रतिशत कीमत का भुगतान अग्रिम किया जाना था। साथ ही इस समझौते में 50 प्रतिशत का एक ऑफसेट नियम भी लगाया गया था। जिसके तहत राफेल समझौते की मूल कीमत यानी 7।87 अरब यूरो की 30 प्रतिशत रकम को भारत के मिलिट्री एयरोनॉटिकल्स संबंधी रिसर्च कार्यक्रमों में निवेश करेगा। डील की कुल कीमत का 20 प्रतिशत फ्रांस, भारत में राफेल कल- पुर्जों के उत्पादन में निवेश करेगा।

राफेल डील को लेकर शुरुआती बातचीत के बाद मूल पैकेज में अन्य हथियारों को भी शामिल किया गया था। इसमें कुछ निम्न प्रकार हैं-

स्कैल्प: जमीन से लंबी दूरी तक हमला करने वाली अचूक मिसाइल। मारक क्षमता 300 किमी, मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम प्रतिबंधों से लैस

मीटियोर: विजुअल रेंज से परे, हवा से हवा में मार करने वाली अचूक मिसाइल। अपनी श्रेणी में सबसे अग्रणी, 100 किमी दूर ही दुश्मन के विमान को निशाना बनाने में सक्षम 

क्विक रिएक्शन डिप्लॉयमेंट: लेह जैसे अधिक ऊंचाई पर स्थित एयर बेस से उड़ान भरने के लिए अतिरिक्त क्षमता 

हेलमेट माउंटेड साइट्स और टारगेटिंग सिस्टम: शार्ट नोटिस पर हथियारों को मार गिराने के लिए

आपको बता दें कि 2007 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने इस सौदे के लिए निविदा निकाली थी, लेकिन कीमत को लेकर मामला नहीं जमा और डील लटकी रही और अब जब मोदी सरकार के नेतृत्व में ये डील हुई है तो कांग्रेस इस पर सवाल खड़े कर रही है। 

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