नए सिरे से आरक्षण प्रावधान की समीक्षा की है जरूरत
नए सिरे से आरक्षण प्रावधान की समीक्षा की है जरूरत
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प्राचीनकाल में देश वर्णाश्रम व्यवस्था में बंटा था। समाज में चार वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र के आधार पर लोगों को जीवन निर्वाह करना होता था और पेशेगत तौर पर भी ये वर्ग अपनी - अपनी आजीविका चलाते थे लेकिन। कालांतर में सामाजिक मान्यताऐं बदलीं और गांवों में ठाकुरों का प्रभुत्व हो गया। ये ठाकुर अपेक्षाकृत अगड़ी जाति के थे। इन्होंने आर्थिकरूप से कमजोर वर्ग का शोषण करना प्रारंभ कर दिया और फिर यह वर्ग अपेक्षाकृत धन और जमीन से संपन्न हो गया। धन से संपन्न होने के साथ ही इस वर्ग ने बाहुबल भी बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। जिसके बाद यह दबंग कहा जाने लगा।

अब यह दबंग वर्ग अपने हर कार्य के लिए दलित का शोषण करने लगता। ऐसे में ये जातियां पिछड़ने लगीं। जब देश स्वाधीन हुआ तो सभी वर्गों को समानता के साथ जीवन निर्वाह करने का अधिकार दिए जाने की बात सामने आई। इस उद्देश्य से भारतीय संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया। 

आरक्षण का यह प्रावधान संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष भारत रत्न बाबा साहेब डाॅ. भीमराव आंबेडकर ने महज 10 वर्ष के लिए किया लेकिन राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से आरक्षण की परिपाटी लगातार ढोई जाती रही। हालात ये हो गए कि सामान्य वर्ग का नागरिक खुद को लाचार समझने लगा। नौकरियों में पिछड़े वर्ग को आसानी से प्रवेश मिलने लगा। उच्च शिक्षा भी उसे मिलने लगी।

हालांकि इस वर्ग का जीवन स्तर अब सुधरने लगा मगर कालांतर में समाज में फिर से एक खाई निर्मित हो गई। अब अपेक्षाकृत पिछड़े माने जाने वाले वर्ग में भी कुछ लोग आरक्षण व्यवस्था का लाभ लेकर शक्तिशाली बन गए और फिर शक्ति एक ओर केंद्रित हो गई। शक्तिसंपन्न लोग अपने ही वर्ग के साथियों का शोषण करने लगे। उन्हें अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए उपयोग में लाने लगे।

ऐसे में आरक्षण व्यवस्था का लाभ वास्तविक व्यक्ति की पहुंच से बेहद दूर रहा। यही नहीं सदियों से चली आ रही सामाजिक मान्यताऐं कायम की कायम ही रहीं। इसके उदाहरण आज भी देखने को मिलते हैं। आज भी किसी दबंग के क्षेत्र से दलित की बारात निकल जाए तो गांव में हंगामा हो जाता है। कई ऐसे वाकये हैं जिनमें पिछड़ी जाति के लोगों को आरक्षण का सामाजिक लाभ मिलने से वंचित होना पड़ रहा है।

यहां एक शब्दावली आती है क्रिमिलेयर। क्रिमिलेयर का तात्पर्य आरक्षित वर्ग के उन लोगों से है जो कि इसका पूरी तरह से लाभ उठाकर संपन्न हो चुके हैं ये ऐसे लोग हैं जिन्हें वास्तविकता में आरक्षण की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे में आरक्षण के प्रावधानों से इन्हें दूर किए जाने की बातें सामने आती रही हैं। मगर इसके साथ ही अब देश में कई वर्ग आरक्षण की मांग करते हुए राजनीतिक मैदान में उतरने लगे हैं।

ऐसे में आरक्षण प्रावधान का असल अर्थ तो सिमटकर रह गया है। कभी गुर्जर आरक्षण की मांग उठती है तो कभी पटेल, पाटिल और पाटीदार आरक्षण की मांग उठती है यही नहीं कई ऐसे वर्ग हैं जो खुद को अल्पसंख्यकों में शामिल होने की कवायदों में लगे रहते हैं।

ऐसे में आरक्षण प्रावधान की नए सिरे से समीक्षा की आवश्यकता महसूस की जा रही है। जिस तरह से आरक्षण के नाम पर राजनीतिक प्रदर्शन किए जा रहे हैं और ये प्रदर्शन हिंसक हो रहे हैं वे देश की एकता और समृद्धि के लिए सही नहीं है। ऐसे में आरक्षण प्रावधान की नए सिरे से समीक्षा कर यह बात जानना जरूरी है कि आखिर वास्तविकता में किस वर्ग को आरक्षण की आवश्यकता है। 

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