नई दिल्ली : आमतौर पर लोकसभा की कार्रवाईयों को भारी हंगामे के चलते स्थगित करना पड़ता है लेकिन ऐसे कई अवसर भी होते हैं जब सांसदों द्वारा सदन में मुद्दे की बात कर कई मसलों पर गंभीरता से विचार किया जाता है। आज लोकसभा के सत्र में ऐसी ही कुछ बात सामने आई है। सदन में सेटेलाईट तकनीक की चर्चा होने पर सवाल किया गया कि क्या सेटेलाईट तकनीक के माध्यम से टेलिमेडिसन सेवा को देश के विभिन्न क्षेत्रों में विकसित नहीं किया जा सकता।
जिस पर कहा गया कि इस सुविधा के माध्यम से चिकित्सा क्षेत्र को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। सवाल किया कि महाराष्ट्र के विभिन्न चिकित्सालयों में इसका उपयोग किया जा रहा है मगर क्या देश के अन्य क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जाता है। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय के एमओएस डाॅ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि टेलिमेडिसिन की सुविधा देश के विभिन्न चिकित्सालयों में उपलब्ध है। स्पेस टेक्नोलाॅजी को स्पेस के शोध और रिसर्च तक सीमित रखना इसका काम नहीं है।
इसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में भी किया जा सकता है। चिकित्सा क्षेत्र में भी कई बार कांप्लीकेटेड केसेस में इसका उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर कल्याण से एसएस डाॅ. श्रीकांत शिंदे ने सवाल किया कि क्या स्पेस तकनीक का उपयोग कृषि कार्य में सामने आने वाली परेशानियों को जानने और किसानों को अपडेट करने में किया जा सकता है। इस पर एमओएस डाॅ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि किसानों को कृषि कार्य में सुविधा प्रदान करने के लिए सैटेलाईट से प्राप्त मौसम संबंधी जानकारी से अपडेट किया जाता है।
किसानों को एसएमएस कर विभिन्न जानकारियां प्रदान की जाती हैं। ऐसी कई जानकारियां जो नई होती हैं और सैटेलाईट कम्युनिकेशन का उपयोग उसमें किया जा सकता है तो वह किसानों तक जरूर पहुंचाई जा सकती है। भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने सवाल किया कि भूकंप का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता मगर क्या हिमालयी क्षेत्र में हो रही भूगर्भीय हलचल और हिमालय के प्रति वर्ष 5 मिलीमीटर उपर उठने को लेकर कोई जानकारी नहीं मिल सकती, इन हलचलों को पता लगाने के लिए इसरो किस तरह की पहल कर रहा है।
इस पर एमओएस ने कहा कि पूरे विश्व को इस बात की चिंता है। मगर इन माध्यमों से भविष्यवाणी करना कुछ मुश्किल होता है। मगर संभावनाओं का पता लग सकता है जिसके आधार पर कुछ प्रीकाॅशन लिए जा सकते हैं यदि कोई डिजास्टर होता है तो इसरो का विभाग सक्रिय होता है। टीआर सुंदरम ने सवाल किया कि जम्मू - कश्मीर और अन्य क्षेत्रों में रक्षा क्षेत्र में सैटेलाईट तकनीक से हम आतंकियों और अन्य देशों की गतिविधियों का पता नहीं लगा सकते।
इस पर कहा गया कि वहां पुलिस की निगरानी पहले से होती है, रक्षा विभाग अपना कार्य करता है लेकिन फिर भी रेडियो एक्टिव डिटेक्शन ऐसे क्षेत्रों में किया जाता है इसके साथ ही सैटेलाईट तकनीक के ज़रिये मेपिंग का कार्य किया जाता है, इसलिए इसमें अधिक आवश्यकता महसूस नहीं होती मगर फिर भी सैटेलाईट तकनीक से सीमा पर चैकसी रखी जाती है।
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