नईदिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 4 अक्टूबर वर्ष 2016 को एंप्लाॅई प्राॅविडेंट फंड, आॅर्गनाइजेशन को लेकर निर्णय दिया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कर्मचारियों को उनके पूरे वेतन पर पेंशन प्रदान करने को लेकर सहमति नहीं जताई है। ऐसी कंपनियां जिनका फंड निजी ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित किया जाता है उसे रियायत प्राप्त कंपनियां कहा जाता है। साथ ही ऐसी कंपनियों का फंड ईपीएफओ द्वारा मैनेज किया जाता है, उन्हें बिना छूट वाली कंपनी कहा जाता है।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था, इस तरह के आदेश के बाद, वे ईपीएफओ को लेकर सहमत हो गए थे। मगर बाद में कहा गया कि, इस तरह का निर्णय केवल बिना छूट वाली कंपनियों के कर्मचारियों के लिए कारगर है। पहले विभाग ने यह स्पष्ट नहीं किया था कि, वह बिना छूट वाली कंपनियों और अन्य कंपनियों को भी अपनी स्कीम का लाभ देगा। ऐसे में छूट वाली कंपनियों के कर्मचारियों को पूरे वेतन पर पेंशन प्राप्त करने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
यदि ऐसा होता है तो वे कर्मचारी जो पेंशन प्राप्त करते हैं, उन्हें मुश्किल हो सकती है। उल्लेखनीय है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने अपने कई फैसलों में बदलाव किए हैं। हालांकि ईपीएफओ के निर्णय कर्मचारियों के हित में नज़र आ रहे हैं। पूरे वेतन पर पेंशन देने के लिए ईपीएस में पूरे वेतन में योगदान को एक्सेप्ट करना होगा। तभी कर्मचारी को पेंशन पूरे वेतन पर दी जा सकेगी।
उदाहरण के तौर पर ईपीएफओ 15 हजार रूपए वेतन की सीमा प्राप्त करने के साथ ईपीएस 8.33 प्रतिशत के योगदान को स्वीकार करता है। दूसरी ओर पेंशन 15 हजार रूपए प्रति माह के वेतन के आधार पर ही प्राप्त होग। मगर विभाग यदि पूरे वेतन पर योगदान को मान लेता है तो फिर, कर्मचारी को दी जाने वाली पेंशन 15 हजार रूपए प्रतिमाह की सीमा वाली पेंशन से कई गुना अधिक हो जाएगी।
विभाग का कहना है कि, निजी ट्रस्ट से ईपीएस में धनराशि स्थानांतरित नहीं की जाएगी। अर्थात जो लोग निजी ट्रस्ट या कंपनी में ही धनराशि जमा करवाते हैं उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा लेकिन यदि कर्मचारियों का ईपीएस, विभाग के पास जमा होता है तो फिर उन कर्मचारियों को जरूर लाभ होगा और उनके अकाउंट में अतिरिक्त राशि जमा कर दी जाएगी।
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