आखिर पर्यावरण को लगी किसकी नज़र!
आखिर पर्यावरण को लगी किसकी नज़र!
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विश्वभर में जलवायु परिवर्तन और उसके कारकों को लेकर चर्चाऐं हो रही हैं। इसे लेकर कुछ समय पूर्व ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। तो दूसरी ओर भारत में बिन मौसम बरसात हो रही है। चेन्नई जलमग्न हो गया है। अभी भी वहां भारी बारिश की चेतावनी दी जा रही है। देशभर में सर्द मौसम का आलम है और चेन्नई बारिश से बेहाल है। चेन्नई की सड़कों पर पानी - पानी माहौल हो गया है। हालांकि देशभर में ठंड का असर भी इतना जोरदार नहीं है जितना होना चाहिए।

आखिर यह किस बात का संकेत है। क्या प्रकृति हमें कुछ संकेत दे रही है। क्या प्रकृति कुछ कहना चाहती है। जी हां, यह मानव के लिए विनाश का एक बहुत बड़ा संकेत है। मानव को प्रकृति द्वारा चेताया जा रहा है कि यदि बिगड़ते पर्यावरण को सहेजने के लिए कुछ नहीं किया गया तो संभवतः धरती पर जीवन का अस्तित्व संकटग्रस्त हो जाएगा। मानसून बीत गया और ऐसे बीता कि पता ही नहीं चला।

फिर अभी मावठे की बारिश का दौर भी नहीं था कि चेन्नई में बारिश होने लगी। इसके उलट महाराष्ट्र में फिर से सूखे के हालात हैं। लगता है महाराष्ट्र की उपजाऊ धरती रेगिस्तान में तब्दील होने वाली है। वर्षों से वहां सूखे की समस्या बनी हुई है। बारिश के मौसम में पानी गिरता है। मुंबई की सड़कों पर पानी जम जाता है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि महाराष्ट्र में सूखा क्यों। मध्यप्रदेश में इस बार अच्छी वर्षा हुई। कुछ क्षेत्रों में औसत से भी अधिक वर्षा हुई और फसलें प्रभावित हुईं। स्थिति यह थी कि सारा पानी केवल 3 - 3 दिनों में ही बरसने लगा। आखिर अतिवृष्टि की स्थिति क्यों हुई। बिहार, जम्मू - कश्मीर, पश्चिम बंगाल में बाढ़ के हालात क्यों बनें। 

ऐसे तमाम सवाल हैं जो गंभीर चिंताऐं उत्पन्न करते हैं। इन सवालों के जवाब में समाधान खोजने पर केवल यही बात सामने आती है कि प्रकृति को बचाईये आप बचिए। क्या कभी आपने गौर किया है कि गर्मी के दिनों में किसी कार के टाॅप पर खस को गीला कर लगाया जाता है या फिर क्या आपने कुटियाऐं देखी हैं। ये कुटियाऐं एयर कंडिशंस का कार्य बेहतर तरीके से करती हैं।

खस का पर्दा कार की छत को अपेक्षाकृत अधिक गर्म होने से बचाता है लेकिन इसके बाद भी हम एयरकंडीशंड का उपयोग करते हैं जो कृत्रिमरूप से हमें ठंडक प्रदान करता है लेकिन इसमें उत्सर्जित होने वाली गर्मी ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाती है ऐसे में ओज़ोन परत में होने वाले छिद्र बढ़ने लगते हैं और सूर्य की पराबैंगनी किरणें बढ़ती मात्रा में धरती तक पहुंचती हैं। गर्म प्रभाव वाली गैसों का अधिक उत्सर्जन और सूर्य की बढ़ती गर्मी से तापमान बढ़ता है और ऐसे में पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होता है।

हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर अब तेजी से पिघलने लगे हैं। ऐसे में कई तरह के खतरे हमारे सामने हैं। इनके उपाय के तौर पर मानव को अधिक से अधिक पौधे रोपकर उनका संरक्षण करना होगा। यही नहीं वन क्षेत्र को भी बढ़ाना होगा। मिट्टी का कटाव रोकना होगा और ग्रीन हाउस प्रभाववाली गैसों के उत्सर्जन को रोकना होगा तभी हम पर्यावरण का सही तरह से संरक्षण कर पाऐंगे। 

'लव गडकरी'

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