शिंदे की याचिका पर डिप्टी स्पीकर, महाराष्ट्र पुलिस और केंद्र को नोटिस, 11 जुलाई को अगली सुनवाई
शिंदे की याचिका पर डिप्टी स्पीकर, महाराष्ट्र पुलिस और केंद्र को नोटिस, 11 जुलाई को अगली सुनवाई
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महाराष्ट्र सरकार का सियासी संकट अब सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है। जी हाँ और शिंदे गुट ने अदालत से कहा कि, 'उद्धव ठाकरे सरकार अल्पमत में है और वह राज्य की मशीनरी को तबाह कर रही है।' केवल यही नहीं बल्कि शिंदे गुट ने सवाल किया कि 'जब डिप्टी स्पीकर को हटाए जाने का नोटिस पेंडिंग हो तो वो विधायकों को अयोग्य ठहराने का फैसला कैसे ले सकते हैं।' वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट से सवाल किया कि आप पहले हाईकोर्ट क्यों नहीं गए। इस पर जवाब मिला कि विधायकों को धमकाया जा रहा है। शव वापस आने की बात कही जा रही है। मुंबई में माहौल उनके अनुकूल नहीं है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में शिवसेना, डिप्टी स्पीकर का पक्ष भी सुना। वहीं सुनवाई के बाद कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल, महाराष्ट्र विधानसभा, शिवसेना विधायक दल के नेता अजय चौधरी, महाराष्ट्र पुलिस, और केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है। अगली सुनवाई 11 जुलाई को होगी।

आप सभी को बता दें कि कोर्ट के अंदर शिंदे गुट ने कहा- 'डिप्टी स्पीकर के पास सदस्यता रद्द करने का जो नोटिस दिया गया है, वो संवैधानिक नहीं है। हमारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, हमें धमकाया जा रहा है और हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है। ऐसे में हम आर्टिकल 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं।' वहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'आप जो धमकी की बात कह रहे हैं उसे सत्यापित करने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है। डिप्टी स्पीकर के नोटिस में जो कम समय देने की बात कही है, उसे हमने देखा है। आप इस सवाल को लेकर के सामने क्यों नहीं गए?'

इस दौरान शिंदे गुट का कहना रहा- 'साल 2019 में शिंदे को सर्वसम्मति से पार्टी का नेता नियुक्त किया गया, लेकिन 2022 में स्वत: संज्ञान लेते हुए एक नया व्हिप जारी किया जाता है। शिंदे के खिलाफ यह कहा गया कि उन्होंने अपनी स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी। सबसे जरूरी मुद्दा यह है कि स्पीकर या डिप्टी स्पीकर तब तक कुर्सी पर नहीं बैठ सकते हैं, जब तक उनकी खुद की स्थिति स्पष्ट नहीं है।'

वहीं आगे शिंदे गुट ने यह भी कहा- 'डिप्टी स्पीकर ने इस मामले में बेवजह की जल्दबाजी दिखाई। स्वाभाविक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया। जब स्पीकर की पोजिशन पर सवाल उठ रहा हो तो एक नोटिस के तहत उन्हें हटाया जाना तब तक न्यायपूर्ण और सही लगता, जब तक वे स्पीकर के तौर पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए बहुमत न साबित कर दें। जब स्पीकर को अपने बहुमत पर भरोसा है तो वे फ्लोर टेस्ट से डर क्यों रहे हैं। स्पीकर के पास विधायकों को अयोग्य करने जैसी याचिकाओं पर फैसला करने का संवैधानिक अधिकार होता है, ऐसे में उस स्पीकर के पास बहुमत बेहद जरूरी है। जब स्पीकर को हटाए जाने का प्रस्ताव पेंडिंग हो, तब मौजूदा विधायकों को अयोग्य घोषित कर विधानसभा में बदलाव करना आर्टिकल 179 (C) का उल्लंघन है। इस मामले में बेवजह की जल्दी दिखाई गई। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल कि स्पीकर इस मामले को कैसे देख सकता है। आज उनके रिमूवल के नोटिस पर पहले बात हो।'

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'डिप्टी स्पीकर को चुनौती दी गई है। हमें उन्हें पहले सुनना चाहिए।' इस तरह काफी देर तक चले मामले के बाद अगली सुनवाई 11 जुलाई को होने के निर्देश दिए गए।

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